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ज्ञानसार
जो चेतन-अचेतन द्रव्य भूतकालीन भाव का कारण हो या भविष्यकाल के भाव का कारण हो उसे द्रव्य निक्षेप कहते हैं ।
उदाहरणार्थ भूतकाल में वकील या डाक्टर हों परन्तु वर्तमान में वकालत न करते हों या दवाई नहीं करते हों तो भी जनता उन्हें वकील या डॉक्टर कहती है । यह द्रव्य निक्षेप से वकील या डाक्टर कहे जाते हैं। इसी तरह अभी तक वकालात पढ़ रहे हों या मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे हों तो भी लोग उन्हें वकील या डॉक्टर कहते हैं क्योंकि वे भविष्य में वकील या डॉक्टर होनेवाले हैं । इसी तरह भूतकालीन पर्याय का एवं भविष्यकालीन पर्याय का जो कारण वर्तमान में हो उसे द्रव्य निक्षेप कहते
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हैं ।
द्रव्य निक्षेप की दूसरी परिभाषा इस तरह की जाती है- 'अणुवओगो दव्वं' अनुपयोग अर्थात् भावशून्यता, बोध-: ध-शून्यता... उपयोग शून्यता । जिस क्रिया में भाव, बोध, उपयोग न हो उस क्रिया को द्रव्य क्रिया कहते हैं ।
लोकोत्तर द्रव्य - आवश्यक की चर्चा करते हुए अनुयोगद्वार सूत्र में कहा है कि यदि कोई श्रमण गुणरहित और जिनाज्ञारहित बनकर, स्वच्छन्दता से विचरण कर, उभयकाल प्रतिक्रमण के लिए खड़ा हो उस साधु वेशधारी का प्रतिक्रमण वह लोकोत्तर द्रव्य आवश्यक है ।'
द्रव्य निक्षेप की विस्तृत चर्चा के लिए 'अनुयोग द्वार सूत्र' का अध्ययन करना आवश्यक है ।
भावनिक्षेप :
तीर्थंकर भगवन्त को लेकर जहाँ भाव-निक्षेप का विचार किया गया है, वहाँ कहा है—'समवसरणठ्ठा भाव जिणिदा' समवसरण में बैठे हुए ... धर्मदेशना देते हुए तीर्थंकर भगवन्त भाव तीर्थंकर हैं ।
'श्री अनुयोगद्वार सूत्र' में कहा है : 'वक्तृविवक्षित परिणामस्य भवनं भावः ।' वक्ता के कहे हुए परिणाम जाग्रत होने को भाव कहते हैं ।
भाव से प्रतिक्रमण आदि क्रियायें दो प्रकार से होती हैं : (१) आगम से (२) नो आगम से ।
• प्रतिक्रमण के सूत्रों के अर्थ के उपयोग को भाव प्रतिक्रमण कहते हैं । इसी तरह जो क्रिया की जाती है उस क्रिया के अर्थ के उपयोग हो तो वह क्रिया भावक्रिया कही जाती है ।