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________________ ५६४ ज्ञानसार मिथ्यात्व गुणस्थानक में भी जाता है । उपशम श्रेणी कितनी बार ? : • एक जीव को समस्त संसारचक्र में पाँच वार उपशम श्रेणी की प्राप्ति होती है। एक जीव एक भव में ज्यादा से ज्यादा दो बार उपशम श्रेणी प्राप्तकर सकता है। परन्तु जो दो बार उपशम श्रेणी पर चढ़ता है वह इसी भव में क्षपक श्रेणी प्राप्त नहीं कर सकता है। यह मंतव्य कर्मग्रन्थ के रचयिता आचार्यों का है। आगमग्रन्थों का मत है कि एक भव में एक ही श्रेणी प्राप्त कर सकता है । उपशम श्रेणी प्राप्त करनेवाला क्षपक श्रेणी उसी भव में प्राप्त नहीं कर सकता है । 'मोहोपशमो एकस्मिन् भवे द्विः स्यादसन्ततः । यस्मिन् भवे तूपशम क्षयो मोहस्य तत्र न ॥" वेदोदय और श्रेणी : ऊपर जो उपशम श्रेणी का वर्णन किया गया है वह पुरुषवेद के उदय होने पर श्रेणी प्राप्त करनेवाली आत्मा को लेकर किया गया है । जो आत्मा नपुंसक वेद के उदय में श्रेणी मांडता है वह सर्वप्रथम अनन्तानुबन्धी और दार्शनत्रिक का तो उपशमन करता ही है । परन्तु स्त्रीवेद या पुरुषवेद के उदय में श्रेणी माण्डनेवाला आत्मा जहाँ नपुंसक वेद का उपशमन करता है, वहाँ नपुंसक वेद में श्रेणी माण्डनेवाला आत्मा भी नपुंसक वेद का ही उपशमन करता है । इसके बाद स्त्रीवेद और नपुंसकवेद-दोनों का उपशमन करता है । यह उपशमन नपुंसकवेद के उदयकाल के उपान्त्य समय तक होता है। वहाँ स्त्रीवेद का पूर्णरूपेण उपशमन होता है। आगे सिर्फ नपुंसकवेद की एक समय की उदय स्थिति शेष रहती है, वह भी भोगने पर आत्मा अवेदक बनती है । इसके बाद पुरुषवेद वगैरह ७ प्रकृति का एक साथ उपशमन करना चालू करता है । • जो आत्मा स्त्रीवेद के उदय में श्रेणी मांडता है वह दर्शनत्रिक के बाद नपुंसकवेद का उपशमन करता है, इसके बाद चरम समय जितनी उदय स्थिति को छोड़कर स्त्रीवेद के शेष दलिकों का उपशमन करता है । चरम समय का दलिक भोगकर क्षय होने के बाद अवेदी बनता है। अवेदक बनने के बाद पुरुषवेद आदि ७ प्रकृति का उपशमन करता है।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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