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जो जादि जोयणसयं दियहेणेक्केण लेवि गुरुभारं ।
सो किं कोसद्धं पिहुण सक्कए जाउ भुवणयले ॥ ३५६ ॥ उत्तर साफ़ है। जो व्यक्ति भारी बोझ लादकर पृथ्वी पर एक दिन में सौ योजन तक जाता है क्या वह आधा कोस नहीं जा सकेगा?
“जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहिं। ।
सो किं जिप्पइ इक्कि णरेण संगामए सुहडो ॥ ३५७॥ जो वीर युद्धरत एक करोड़ मनुष्यों को जीत लेता है क्या वह एक मनुष्य को नहीं जीत पाएगा?
सगं तवेण सव्वो वि पावए तहिं वि झाणजोएण ।
जो पावइ सो पावदि परलोए सासयं सोक्खं ॥ ३५८ ॥ (कायक्लेश आदि) तप से तो बहुत से लोग स्वर्ग पा लेते हैं। लेकिन जो ध्यान के योग से स्वर्ग प्राप्त करते हैं वे उससे शाश्वत सुख यानी मोक्ष भी पा सकते हैं।
अइसोहणजोएणं सुद्धं हेमं हवेदि जह तह य ।
कालाईलद्धीए अप्पा परमप्पओ हवदि ॥ ३५६ ॥ जैसे शोधन सामग्री से स्वर्ण शुद्ध स्वर्ण बन जाता है वैसे ही काल आदि लब्धि से आत्मा (शुद्ध होकर) परमात्मा बन जाती है।
वर वयतवेहि सग्गो मा दुक्खं होदू णिरदि इयरेहिं ।
छायातबट्ठियाणं पडिवालंताण गुरुभेयं ॥ ३६० ॥ अव्रत और अतप से नरक का दुःख झेलने की अपेक्षा व्रत और तप से स्वर्ग प्राप्त कर लेना अच्छा है। छाया और धूप में बैठने वाले के प्रतिपालक कारणों में बड़ा भेद है।