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________________ Pि-Fun શાસન સમ્રાટ . [५५] यस्यैव जन्मास्ति च तस्य मृत्यु-, र्यस्यैव संपद्विपदेव तस्य । यस्यैव संगोऽस्ति भवेद्विसंगो;/ यस्यैव दुःखं सुखमेव तस्य । यस्यास्ति तारुण्यतरुश्च लेक क्रमेण वृद्धोऽपि भवेत्स जीपी निजात्मबाह्या इति को पदा प्रोक्ताः सदा सन्ति विनाशशीसः ॥ उत्तरः-इस संसारमें जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु अवश्य होती है, जिसके पास संपदाएं होती हैं उसके पास विपत्तियां भी अवश्य आती हैं, जिसके पास परिग्रह इकट्ठा हो जाता है उसे उन परिग्रहोंका वियोग भी सहना पडता है, जिसको सुख प्राप्त होता है उसको दुःख भी अवश्य भोगना पडता है, इस संसार में जिसके पास अनुक्रमसे बढता हुआ तारुण्यरूपी वृक्ष शोभा देता है उसके पाससे वही तारुण्यरूपी वक्ष जीर्ण भी अवश्य होता है । इस प्रकार विचार करनेसे यही सिद्ध होता है कि इस संसारमें अपने शुद्ध आत्मासे भिन्न जितने भी पदार्थ कहे गये हैं वे सब सदा विनाशशील-नष्ट ह.नेवाले ही देखे गये हैं ॥ ९९ ॥ १०० ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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