SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२८] धर्मोपदेश दे लिया है, धर्म धारण कर लिया है, उन्होंने तत्त्वांका प्रचार कर लिया है, आत्माका हित कर लिया है, श्रेष्ठ चारित्रको धारण कर लिया है, पूजा प्रतिष्ठा करली है, दया पालन करली है, क्षमा धारण करली है, तीर्थयात्रा करली है. देवसेवा तथा गुरुसेवा करली है, उत्तम दान दे लिया है और उत्तम पुण्य संपादन कर लिया है ऐसा समझ लेना चाहिये इसमें किसी प्रकारकी शंका नहीं है। न कभी इसमें शंका करनी चाहिये ॥५१॥५२॥५३॥ को वा जीवति लोकेऽस्मिन् को वा जीवन्मृतो गुरो!' प्रश्न-हे गुरो! इस संसारमें कौन तो जीता और कौन तो ऐसा है जीता हुआ भी मरेके समान है ? क्षमादिधमें स्वपरोपकारे, दक्षाः सदा खात्मावचारणे ये । कर्तुं यतन्ते स्वरसस्य पानं, नित्यं स्वराज्यं स्वगृहं च गंतुम् ॥५४॥ सदैव जीवन्ति त एव जीवाः, स्वात्मानुभूत्यां स्वपदे हि लीनाः। पूर्वोक्तभावैः रहिताश्च जीवाः, सन्त्येव लोकेऽत्र शवस्य तुल्याः ॥५५
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy