SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२७] आशापिशाचः प्रबलोऽपि मोहो, दग्धश्च यैः क्रोधचतुष्टयं च । तैः सर्वशास्त्रं पठितं श्रुतं वा, ध्यानं कृतं श्रेष्ठतपो जपोऽपि ॥५१॥ व्रतोपवासोऽपि परोपकारो, धर्मोपदेशोपि कृतश्च धर्मः। तत्त्वप्रचारः स्वहितः कृतश्चा-, चारो वरश्चाचरितः सदैव ॥५२॥ पूजा प्रतिष्ठा च दया क्षमापि, कृतैव यात्रा गुरुदेवसेवा। दत्तं सुदानं च कृतं सुपुण्यं, ज्ञातव्यमेवं न च शंकनीयम् ॥५३ उत्तरः- जिन पुरुषोंने आशारूपी पिशाचको नष्ट कर दिया है, अत्यंत तीव्र मोह को जला दिया है और क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायोंको नष्ट करदिया है, समझलेना चाहिये कि उन्हीं लोगोंने समस्त शास्त्रीको पढ लिया है, समस्त शास्त्रोंको सुन लिया है, उन्हींने उत्तम ध्यान धारण कर लिया है, उन्हींने, जप तप कर लिया हैं, व्रत उपवास कर लिया है, परोपकार कर लिया है,
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy