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________________ [२३६] शिववरसुखदात्री वीरवाणी सदैव । मम शुभमतिदाता शांतिसिंधुः सुधर्मः ॥१६ परमदेव भगवान शान्तिनाथ जिनराज सदा जयवंत रहें । देव मनुष्य और मुनियों के द्वारा पूज्य श्रीवर्धमान भगवान सदा जयवंत रहें । इसीप्रकार मोक्ष सुख देनेवाली भगवान महावीर स्वामी की वाणी सदा जयवंत रहे और मुझको शुभबुद्धि देनेवाले आचार्य शान्तिसागर तथा सुधर्मसागर सदा जयवंत रहे ॥१६॥ छंदोलंकारशास्त्रे वा न च काव्यकलादिकं । नैव नीत्यादिशास्त्रं च न्यायव्याकरणादिकम् ॥ विशेष धर्मशास्त्रं वा नैव जानामि तत्त्वतः । तथापि केवलं भक्त्या लिखितोऽयं मयाधुना ॥ यद्यपि मैं छंदः शास्त्र, अलंकार शास्त्र वा काव्य शास्त्र और कलादिकों को नहीं जानता हूं, न मैं नातिशाखको जानता हूं और न न्याय व्याकरणादिक जानता हूं। तथा विशेष रीति से धर्मशास्त्रको भी अच्छी तरह नहीं जानता तथापि केवल भक्तिके वश होकर मैने इस समय यह शाख लिखा है ॥ १७-१८ ॥ दीक्षागुरोरेव च शांतिसिंधोः, संसारहर्तुः शिवसौख्यदातुः।
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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