SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२३५] मैने अबतक चतुर्विशति तीर्थकर की स्तुति, पंचपरमेष्ठी स्तुति, आचार्य शांतिसागरजी का चरित्र और आत्मभावना आदि ग्रंथांकी रचना की है ॥ १२ ॥ उदगिरे पुरे श्रेष्ठी गंगासानामकोऽभवत् । तद्भार्या रुक्मिणी ज्ञेया रामचन्द्रः सुतस्तयोः ॥ सूरेराज्ञां समादाय मयैव कुंथुसिंधुना । दीक्षितः सोऽपि भव्यात्मा विद्वान् सुमतिसागरः ऊदगिरि नगर में एक सेठ गंगासा रहते हैं उनकी स्त्रीकी नाम रुक्मिणी है उन दोनोंके रामचन्द्र नामका पुत्र था । मुझ कुंथूसागर मानेने आचार्य शान्तिसागर की आज्ञा लेकर उस भव्य और विद्वान् रामचन्द्रको मुनि दीक्षा दी है और सुमतिसागर उनका नाम निर्देश किया है ॥ १३-१४ ॥ अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा स्खलनं यदि मे भवेत् । ग्रंथेऽस्मिन् तद्बुधा नित्यं श्रमणाः शोधयंत्विति ॥ मेरे अज्ञान वा प्रमाद से यदि इस ग्रंथ में कुछ कमी वा भूल रह गई हो तो विद्वान् मुनियों को उसे शुद्ध कर लेना चाहिये ||१५|| जयतु जयतु देव: शांतिनाथो जिनेन्द्रः । सुरनरमुनिपूज्यो वर्द्धमानो जिनेशः ॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy