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________________ [२२० प्रश्नः- हे भगवन् आपके प्रसादसे अपने आत्माको शुद्ध करनेके लिये समस्त व्रतोंके लक्षण और अतिचार जान लिये। अब कृपाकर बाकीकी प्रतिमाओंका लक्षण कहिये । जिन्हे धारणकर यह श्रावक अंतमें मुनि होकर मोक्षमें जा विराजमान होता है । रागद्वेषं परित्यज्य समो भूत्वा प्रियाऽप्रिये । पदार्थे स्वात्मबाह्ये च दुःखदे स्वात्मनाशिनि ॥ द्वात्रिंशद्दोषमेवाऽपि त्यक्त्वा संसारदं तथा । मना भवंति शुद्धेऽस्मिन् स्वात्मनि सौख्यदायिनि। तद्वा सामायिकं प्रोक्तं करणीयं त्रिकालके । तृतीया प्रतिमा ज्ञेया श्रावकस्य महात्मनः ॥१२ ___उत्तरः-अब तीसरी प्रतिमाका स्वरूप कहते हैं। जो पुरुष रागद्वेषको छोडकर तथा आत्मासे भिन्न और आत्माको नाश करनेवाले और दुःख देनेवाले प्रिय अप्रिय समस्त पदार्थों में समता धारण कर और जन्ममरण रूप संसारको बढानेवाल बत्तीस दोषोंका त्यागकर सुख देने वाले अपने शुद्ध आत्मामें लीन होते हैं, उसको सामायिक कहते हैं । यह सामायिक महात्मा श्रावकोंको तीनों समय करना चाहिए । इसको तीसरी प्रतिमा कहते हैं ॥१०-१२ सर्वारम्भं परित्यज्याहारं चतुर्विधं तथा। कषायविषयान् त्यक्त्वा संसारदुःखदायिनः ॥ १३
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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