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________________ १.२२४] लिए खडे होना है और अनेक दुःख और चिंताओंको देने वाला पांचवा अतिचार अन्य दाताओंके साथ ईर्षा करना है । इस प्रकार दुःख देनेवाले ये पांच अतिचार हैं। स्वर्ग मोक्षकी इच्छा करनेवाले श्रावकोंको इनका स्वरूप समझकर इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिए ॥५०६५०७॥ मांसादिदर्शनात् ज्ञेयः स्पर्शनादस्थिचर्मणः। हिंसाकरं वचः श्रुत्वा भुक्त्वा वा त्यक्तवस्तुनः । मनोग्लानिर्यदा जाता अंतरायस्तदा तदा। त्याज्यश्च सर्व आहारो व्रतपूर्णैः सुगेहिभिः ॥९ ___ मांसादिक पदार्थोक दृष्टिगोचर होने से हड्डी, चमडा आदिके स्पर्श होनेसे हिंसा करनेवाले वचनोंको सुनकरके त्यागी हुई वस्तुको खाकरके और जब मन में ग्लानि आजाय तब भोजनके अंतराय माने जाते हैं। उस समय समस्त व्रतोंसे सुशोभित रहनेवाले श्रावकोंको सब तरहके. आहारका त्याग कर देना चाहिए ॥ ५०८-९ ॥ भगवंस्त्वत्प्रसादन व्रतानां लक्षणानि च । . तथातिचाराः सर्वेषां ज्ञाताः स्वात्मविशुद्धये ॥ सद्यः शेषप्रतिमानां लक्षणानि निरूपय । धृत्वा ताः श्रावकः पश्चाद् मुनिर्भूत्वा शिवं व्रजेत्
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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