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उद्योगोपयोगी शिक्षणको ही दिलाया । इसलिये से अमथालालजी के विशेष शिक्षण की प्राप्ति नहीं हो सकी । गार्हस्थ्य जीवन.
मेट अमालालजीका विवाह उनके १६ वें वर्ष में अलुवाके सेठ प'मचंद रेवचंदकी कन्या माणिकबाई के साथ हुआ | उनके गर्भ में दो पुत्र व दो पुत्री संतान हुई थी । उन में दो पुत्र तो प्रसव के समय और एक पुत्री विवाहानंतर यम के मेहमान हुई । केवल एक रतन बेन नामक कन्यारत्न अभी मौजूद है । इसके अलावा सेठजीको और कोई पुत्ररत्न की प्राप्ति नहीं हुई । और सेठजीने भी उस के लिये दूसरे विवाह करलेनेका विचार कभी नहीं किया । प्रत्युत् संतान वियोगके दुःख को अत्यंत धैर्य व धर्म्यविचार से सहन किया। इतना ही नहीं, संतानप्रेम के क्षेत्र को विशाल करने लिये अपने आयुष्य को धर्म व समाज सेवा में लगाने का निश्चय किया । और तदनुसार आपने अपने जीवन में कितने ही गरीब कुटुंबियोंकी सहायता कर अपने चित्तकी उदारताको व्यक्त किया है ।
शेटजीकी धर्मपत्नी सौ. माणिकबाईका वियोग सं. १९८८ में हुआ । इस से सेठजीका चित्त और भी उदास हुआ । इसलिये उन्होंने धर्मसाधन में अधिक स्वातंत्र्यकी अभिलाषासे सर्व कुटुंबियोंकी सम्मति से अपनी सारी संपत्ति को अपनी प्रिय पुत्री रतनबेन को देकर उन दम्पतियोंको अपने घर में रख लिया है । व्यापार उद्योग.
शिक्षण से छुट्टी पाने के बाद शेटजीने अपनी दुकान के कामकाज देखने के लिये प्रारंभ किया, साथ ही सराफी के उद्यो
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