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________________ [१८९] रहित हैं। इनमेंसे धर्मद्रव्यका स्वभाव जीव पुद्गलोंके गमन करनेमें सहायता देना है, अधर्म द्रव्यका स्वभाव जीव पुद्गलोंके ठहरने में सहायता देना है,आकाशका स्वभाव समस्त द्रव्योंको अवकाश देना है और कालद्रव्यका स्वभाव द्रव्योंके परिवर्तन में सहायता देना है। इन द्रव्योंका यह स्वभाव स्वाभाविक है । इनके सिवाय अजीव तत्त्व एक पुद्गल और है । वह मूर्त है-स्पर्श रस गंध वर्णसहित है तथा क्रियासहित है । इसप्रकार अजीव तत्त्वके पांच भेद हैं । इन सबका स्वरूप समझकर भव्य जीवोंको अपने हृदय में इस अजीव तत्त्वको अपने आत्मस्वरूप से सर्वथा भिन्न समझना चाहिये, तथा आत्मासे भिन्न ही चिन्तन करना चाहिये ॥ ४०१ ॥ ४०२ ॥ कर्मास्त्रवो यैश्च शुभाशुभैर्वा, मिथ्यात्वरागादिकषायभावैः । भावात्रवः स्यात्खलु तन्निमित्ताद् , द्रव्यास्त्रवो ज्ञानसुखादिहर्ता ॥४०३॥ प्रोकं स्वबुध्द्यास्रवतत्त्वमेवं, यथास्थितं भो व्यवहारदृष्टया । निजात्मबाह्यो द्विविधास्रवोऽपि, ज्ञातव्य एवं परमार्थदृष्टया ॥४०४॥ 10
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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