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________________ [१०७ साधु होकर भी अपने आत्माकी अनुभूतिसे रहित है तथा अपने आत्माकी रुचिसे रहित है उसको असाधु ही समझना चाहिये । जो विद्वान् होकर भी धर्मशून्ग है उसको मूर्ख समझना चाहिये, जो पुरुष अपने आत्मगुणोंसे रहित है उसको दास समझना चाहिये । जो श्रेष्ठ ध्यानसे रहित है उसे मरे हुएके समान समझना चाहिये और जो पुरुष अपने आत्मसु खसे रहित है उसे महादुःखी समझना चाहिये ॥ १९४ ॥ १९५ ॥ शक्तोऽशक्तोऽस्ति को जीवस्त्रिलोके वद भो गुरो ! ___ प्रश्न:- हे प्रभो ! अब यह बतलाइये कि इन तीनों लोको. में कौन जीव समर्थ है और कौन असमर्थ है ? यः प्राणिनां हिंसन एव दक्षः, पापी स शक्तोऽपि सदा ह्यशक्तः । कुंवाधसूनां च नृणां पशूनां, दक्षः सदा पालनपोषणेऽपि ॥१९६॥ स शक्तिहीनोऽपि सदा सशक्को, यः स्यात्कुसंकल्पविकल्पमुक्तः । स एव शक्तः सकलेऽपि विश्वे, वंद्यः स एवास्ति नरामरेन्द्रैः ॥१९७॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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