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________________ [१०६] सुख और शांति देनेवाले व्रतादिकोंका ग्रहण करना है, मुखका सार भगवान जिनेन्द्र देवके कहे हुए शास्त्रोंका पाठ करना है और मनुष्यजन्मका सार इस संसारमें संसारके बंधनोंका त्याग करना है । इस प्रकार समझकर ऊपर लिखे अनुसार रीतिका पालन करना चाहिये,अर्थात् सबका सारभाग ग्रहण करना चाहिये ॥१९२॥१९३॥ मूर्योऽसाधुर्दरिद्री कः को वा दासश्च कथ्यते ? प्रश्न :-हे गुरो ! इस संसार में कौन मर्ख है, कौन असाधु है, कौन दरिद्री है और कौन दास है ? सुपात्रदानेन विना धनाढ्योऽ, प्यत्यन्तपापी च सदा दरिद्री । खात्मानुभूत्या स्वपदेन हीनो। यः साधुरेवापि भवेदसाधुः ॥१९४॥ मूखोंस्ति विद्वानपि धर्मशून्यो । यः स्वात्महीनो भुवि सोऽपि दासः । सध्यानहीनो मृतवत्स जीवो, निजात्मसौख्यस्य विना हि दुःखी ॥१९५ उत्तरः-जो पुरुष धनाव्य होकर भी सुपात्र दान नहीं देता है वह पुरुष अत्यंत पापी और दरिद्री है, जो
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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