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________________ [ ९६ ] यथार्थ ज्ञान निश्चय सम्यग्ज्ञान है और अपने निर्मल शुद्ध आत्मामें स्थिर हो जाना, लीन होजाना निश्चय सम्यक् चारित्र है इसप्रकार इन तीनोंका लक्षण है ।। १७४ ॥ हिताहितं न जानन्ति के वा केषां जगद्गुरो ? प्रश्न: - हे जगद्गुरो इस संसार में कौन से जीव किन २ का हिताहित नहीं जानते हैं ? राजा प्रजानां जिनधर्महीनो, हिताहितं नैव कदापि वत्ति । सतां नृपाणां सचिवोऽपि मूर्खः, तथा च पत्युः कुटिलापि भार्या ॥ १७५॥ सिंहः पशूनां च खलः सतां हि, हिताहितं नैव कदापि वेत्ति । तथैव चौरा वरधार्मिकाणां, at निर्बलानां बलवान् हि पापी ॥१७६॥ वा निर्धनानां धनवान्न वेत्ति, हिताहितं धर्मविधेः कुधर्मी । तथा सूनां कृपणो न वेत्ति, स्वार्थी च केषामपि वेत्ति नैव ॥ १७७॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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