________________
विच्छिण्णथोरथणया, मंसचया पोट्टमऽसुइमंजूसा । मंसट्ठिनसाविरयण-मेत्तं सेसं पि हु सरीरं
॥१५६४॥ जंपिय पयईए च्चिय, दुग्गंधिमलाऽऽविलं विलीणं च। पयइअहोगतिदारं बीभच्छं कुच्छणिज्जं च ॥१५६५॥ अइलज्जणीयमंगुल-रूवं ति ठेइज्जइ य किर रमणं । तम्मि वि रमेज्ज जो नणु, स केण अव्वो विरज्जेज्ज ॥ १५६६॥ एवंगुणाण सीमंतिणीण, रमणम्मि जे विरत्तमणा । जम्मजरामरणाणं, दिण्णो हु जलंऽजली तेहिं
॥ १५६७॥ इय जेण जेण बाहा, हवेज्ज तं तस्स तस्स पडिवक्खं । पुव्वाऽवरनिसिसमए, सम्मं भावेज्ज कि बहुणा ॥ १५६८॥ तित्थयरप्पडिवर्ति, पंचविहाऽऽयारसारगुरुभत्ति । सुविहियजइजणसेवं, सम-समहियगुणसमावासं
॥ १५६९॥ अप्पुव्वगुणसमज्जण-मऽप्पुव्वापुव्वतरसुयऽब्भासं । अप्पुव्वत्थाऽहिगमं, अपुव्वाऽपुव्वसिक्खगहं ॥ १५७०॥ सम्मत्तगुणविसुद्धि, जहगहियवएसु निरइयारत्तं । अंगीकयधम्मगुणा-विरोहिगिहकज्जकारित्तं ..
॥ १५७१ ॥ धम्मे च्चिय धणबुद्धि, समधम्मिसु चेव गाढपडिबंधं । आगमविहिविहियाऽतिहि-प्पयाणपरिसेसभोइत्तं ॥ १५७२॥ इहलोयसिढिलभावं, परलोयाराहणेक्करसियत्तं । चरणगुणलंपडत्तं, जणवायाऽभिगमभीरुत्तं
॥ १५७३॥ संसारमोक्खपरमत्थ-दोसगुणभावणाणुसारेण । पइवेलं चिय सम्म, परमं संवेगरसगमणं
॥ १५७४ ॥ सव्वत्थ विहिपरत्तं, जिणसासणपरमसमरसाऽऽपत्तिं । संवेगसारसमइय-सज्झायज्झाणरसियत्तं
॥ १५७५ ॥ एमाइ उत्तरोत्तर-गुणगणमऽवियण्हमाणसो धीमं । आराहेंतो सम्म, गमेज्ज कालं कुलपसूओ
॥ १५७६ ॥ एवं च गुरुं पि गिरि, आरुहइ पयंपएण जह कोई । आराहणागिरिं तह, सम्मं धीरो समारुहिही
॥ १५७७॥ एवं धम्मऽत्थिगिहत्थ-गोयरा इह विसेसविहिसिक्खा । वुत्ता एत्तो वुच्चइ, मुणिविसया सा समासेण ॥ १५७८ ॥ नवरं समयविऊहिं, सा च्चिय भणिया विसेसविहिसिक्खा । जा किर पइदिणकिरिया, जईण पुण सा इमा नेया ॥ १५७९ ॥ पडिलेहणापमज्जण-भिक्खिरियालोयभुंजणा चेव। पत्तगधुवणवियारा, थंडिलमाऽऽवस्सयाऽऽइया ॥ १५८०॥ जा वि य इच्छामिच्छ-प्पमुहा उवसंपयाऽवसाणाओ। सुविहियजणपाउग्गा, सामायारी दसपयारा ॥ १५८१ ॥ पढउ सयं पाढेउ य, परे वि तत्तं पि चिंतउ पयत्ता । जइ नत्थि विसेसविहिम्मि, आयरो ता मुणी वसणी
॥ १५८२॥ इय गुणदोसपरिक्खं, काउं अवगम्म तह गहणसिक्खं । समणुसरेज्ज अभिक्खं, सम्मं आसेवणासिक्खं ॥१५८३॥ एवं च सप्पभेओ-भयसिक्खजुओ हवेज्ज धम्मऽत्थी । सव्वो वि सव्वया वि, किं पुण आराहणाचित्तो ॥ १५८४ ॥ आराहणा वि न जओ, पायं तह सम्ममरिहइ होउं। एमेव अत्थिणो वि हु, पुव्वमऽणब्भत्थजोगस्स
॥ १५८५ ॥ तम्हा तदऽस्थिणा सव्वहा वि, एयासु भणियसिक्खासु । जइयव्वं जत्तेणं, एत्तो य कयं पसंगण
॥ १५८६ ॥ इय धम्मुवएसमणो-हराए, संवेगरंगसालाए । परिकम्मविहीपामोक्ख-चउमहामूलदाराए
॥ १५८७॥ आराहणाए पणरस-पडिदारमयस्स पढमदारस्स । तइयं सिक्खादारं, समत्तमेयं सभेयं पि
॥ १५८८॥ आराहगो न पुव्वुत्त-सिक्खदक्खो वि विणयविरहेण । होइ कयत्थो जत्तो, एत्तो वुच्चइ विणयदारं
॥१५८९॥ विणओ य पंचरूवो, परूवियो नाणदरिसणचरित्ते । तवविणओ य चउत्थो, चरिमो उवयारिओ विणओ ॥१५९०॥ "काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तहा अनिण्हवणे । वंजण-अत्थ-तदुभए, विणओ नाणस्स अट्ठविहो" ॥ १५९१॥ "निस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ" ॥ १५९२॥ पणिहाणपहाणस्स उ, गुत्तीओ तिण्णि पंच समिईओ। आसज्ज उज्जमंतस्स, होइ विणओ चरित्तस्स ॥ १५९३॥ भत्ती तवम्मि तह तवरएसु, सेसेसु हीलणच्चाओ। जहविरिअमुज्जमो वि अ, तवविणओ एस नायव्वो ॥१५९४ ॥ काइयवाइयमाणस्सिओ अ, तिविहोवयारिओ विणओ। सो पुण सव्वो वि दुहा, पच्चक्खो तह परोक्खो अ ॥१५९५ ।। तत्थ य गुणवंताणं, दंसमणमेत्ते वि आसणच्चाओ। सत्तट्ठपओसप्पणम-ऽभिमुहमिन्ताण सप्पणयं
॥ १५९६॥ अंजलिकरणं पाय-प्पमज्जणं आसणोवणयणं च । आसीणेसु य तेसु, सयमुवविसणं उचियठाणे
॥ १५९७॥ इच्चाइ काइओ वाइ-ओ य नाणाहिए पडुच्च भवे। कित्तंतस्स गुणगणं, गउरवसारेहि वयणेहि
॥ १५९८॥ १. स्थग्यते -आच्छाद्यते,
४७