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________________ रे! रे! देवयभूयं, सावयमेयं खमाविउं मुयह । इहरा इमेण गिरिणा, तुब्भे सव्वे वि चूरिस्सं ।। ७७८८॥ अह भीएणं रण्णा, जिणदत्तो खामिऊण पम्मुक्को । इय हुंडियचोरस्स व, परलोगसुहो नमुक्कारो ॥ ७७८९॥ एवं च उभयलोगे वि, सोक्खमूलं इमं मुणेऊणं । आराहणाऽभिलासी, खवग ! तुम सइ सरेज्ज जओ ॥ ७७९०॥ "पंचण्ह णमोक्कारो, जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो, होइ पुणो बोहिलाभाय ॥७७९१॥ पंचण्ह णमोक्कारो, धण्णाण भवक्खयं करेन्ताणं । हिययं अणुम्मुयंतो, विसोत्तियावारओ होइ ।। ७७९२॥ पंचण्ह नमोक्कारो, एवं खलु वण्णियो महऽत्थो त्ति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिक्खणं कीरए बहुसो ।। ७७९३ ॥ पंचण्ह नमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं भवइ मंगलं" ।। ७७९४॥ इय ताव भणियमेयं, पंचनमोक्कारनामपडिदारं । सम्मण्णाणुवओगाऽभि-हाणमऽक्खेमि अह नवमं ॥७७९५ ॥ खमग! पमायं उम्मूलिऊण, नाणोवओगवं होसु । जम्हा सव्वाऽऽबाहा-विवज्जियं जीवलोगस्स ॥७७९६॥ नाणं चक्खू नाणं, पईवओ नाणमेव दिणणाहो । तिहुयणतिमिसगुहाए, पगासरयणं परं नाणं ॥ ७७९७॥ जइ ताव नाणचक्खू, न होज्ज जीवाण जीवलोगम्मि । ता मोक्खमग्गविसया सम्मपवित्ती न जाएज्जा ॥ ७७९८॥ कह वा कुबोहसलहाऽ-वहारिनाणप्पईवविरहेण । होज्जा जयं वराय, मिच्छत्ततमोभरऽक्कंतं ।। ७७९९ ॥ तह फुरइ फुडं हयतम-सण्णाणदिवायरप्पभावेण । संसारसरे सुंदर-विवेयकमलाऽऽयरवियासो ॥ ७८००॥ तिहुयणतिमिसगुहाए, अण्णाणतमंऽधयारघोराए । जइ नो हुँतो सण्णाण-कागणीरयणवावारो ॥ ७८०१॥ ता कह इमं वरायं, मूढं जिणचक्किमग्गमऽणुलग्गं । अप्पडिहयप्पयारं, इह नीहंतं भवियसेण्णं ।। ७८०२॥ सक्का सुएण णाउं, उड्डेच अहं च तिरियलोगं च । ससुराऽसुरं समणुयं, सगरुलभुयगं सगंधव्वं ॥ ७८०३ ॥ बंधं मोक्खं गइमाऽऽगइंच, जीवाण जीवलोगम्मि । जाणंति सुयसमिद्धा, जिणसासणभावियमईया ॥ ७८०४॥ सूई जहा ससुत्ता, न नासइ कयवरम्मि पडिया वि । जीवो वि तह ससुत्तो, न नासइ गओ वि संसारे ॥७८०५ ॥ सूई जहा असुत्ता, नासइ पडिया कयारमज्झम्मि। पुरिसो वि तह असुत्तो, नासइ संसारगहणम्मि ॥ ७८०६ ॥ जह आगमेण वेज्जो, जाणइ वाहिं चिगिच्छिउं निउणो। तह आगमेण नाणी, जाणइ सोहिं चरित्तस्स ॥ ७८०७ ॥ जह आगमपरिहीणो, वेज्जो वाहिस्स न मुणइ तिगिच्छं। तह आगमपरिहीणो, चरित्तसोहिं न याणाइ ॥ ७८०८॥ तम्हा पुव्वं पुव्वरिसि-परूवियम्मि अप्पमत्तेहिं । उज्जोओ कायव्वो, नरेहिं मोक्खाऽभिकंखीहिं ॥ ७८०९॥ मेहा होज्ज न होज्ज व, जं सा कम्मक्खओवसमसज्झा । उज्जोओ कायव्वो, नाणं अभिकंखमाणेहि ॥ ७८१०॥ जइ वि य दिवसेण पयं, पढेइ पक्खेण वा सिलोगद्धं । नाणं सिक्खेउमणो, तह वि हु मा मुंच उज्जोगं ।। ७८११॥ पेच्छह ता अच्छेरं, अणऽच्छमाणीए अच्छमाणस्स । पासाणस्स बलवओ, खओ कओ वारिधाराए ॥ ७८१२॥ तह सीयएण मउयएण, जोगं अमुंचमाणेण । उदएण गिरी भिण्णो, थेवं थेवं वहंतेण ॥ ७८१३॥ अपरिजिएण मणूसो, बहुणा वि सुएण अपरिसुद्धेण । खलिएण संकिएण य, जाणुयजणहासओ होइ ।। ७८१४ ॥ थेवेण वि अखलियसुद्धएण, थिरपरिचिएण गहियत्थो। सज्झाएण मणूसो, अलज्जियाऽणाउलो होइ ॥ ७८१५॥ गंगाए वालुयं जो मिणेज्ज, उस्सिंचिऊण य समत्थो । हत्थउडेहि समुई, सो नाणगुणे अणुमिणेज्जा ॥ ७८१६॥ पावाउ विणिवित्ती, तहा पवित्ती य कुसलधम्मस्स। विणयस्स य पडिवत्ती, तिण्णि वि नाणस्स कज्जाई ॥ ७८१७॥ संजमजोगे आराहणा य, आणा य वद्धमाणस्स। सक्का नाउं नाणेण, तेण नाणं अहिज्जेज्जा ॥ ७८१८॥ नाणे आउत्ताणं, नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं । को निज्जरं तुलेज्जा, पयडियसिवपउणपयवीणं ॥ ७८१९॥ छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं, अबहुस्सुयस्स जा सोही। तत्तो बहुतरगुणिया, हवेज्ज जिमियस्स नाणिस्स ॥ ७८२०॥ एक्काऽहेण तवस्सी, भवेज्ज नऽत्थेत्थ संसओ को वि। एक्काऽहेण सुयधरो, न होइ धंतं पि तूरंतो ॥ ७८२१॥ जं नेरइओ कम्मं, खवेइ बहुयाहि वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमेत्तेणं ॥ ७८२२॥ नाणेण सव्वभावा, नजति चराऽचरा तिहुयणत्था । तम्हा नाणं कुसलेण, सिक्खियव्वं पयत्तेणं ॥ ७८२३॥ नाणं गिण्हइ नाणं गुणेज्ज, नाणेण कुणइ किच्चाई । इय संसारसमुदं, नाणी नाणट्ठिओ तरइ ॥ ७८२४॥ १. णीहंत - निरसरिष्यत्, २. अपरिजिएण - अपरिचितेन, ૨૨૦
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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