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________________ खीरकयंबो य इमं, सोच्चा धी! धी। निरत्थपाढेण । इति संवेगमुवगतो, पव्वइओ मोक्खमऽणुपत्तो अह अहिचंदेण वसू, अहिसित्तो णियपए णिवो जाओ। रज्जं च भुंजमाणस्स, तस्स एगेण पुरिसेण आगंतूणं भणियं, अडवीए गएण देव ! अज्ज मए । हणणट्ठा पामुक्को, बाणो हरिणस्स सो य लहुं पच्छाहुत्तो अब्भिट्टिऊण, पडिओ सविम्हएण मए । तो फलिहसिला विमला, दिट्ठा करफरिसणवसेण जेणंऽतरिओ हरिणो, पयडो दीसइ तमऽब्भुयं रयणं । देवस्स चेव जोग्गं ति, आगओ तुम्ह कहणट्ठा एवं सोच्चा रण्णा, फलिहसिलाऽऽणाविऊण सा रहसि । सिंहासणकरणट्ठा, समप्पिया सिप्पियजणस्स निम्मायम्मि य तम्मि, अत्थाणीमंडवे य ठवियम्मि। आसीणो नरनाहो, नज्जइ गयणंऽगणठिओ व्व विम्हइओ नयरिजणो, गया पसिद्धी य सेसराईसु । सच्चेण वसू राया, जह अच्छइ नहयलाऽऽसीणो एयपवायनिमित्तं च, सिप्पिणो ते विणासिया सव्वे। दूरट्ठिओ य लोगो, लहेइ विण्णत्तियं काउं एवं वच्चति काले, ते पुण पव्वयगनारया सिस्से। वेयरहस्सं पाढंति, नियगनियगेसु गेहेसु अवरम्मि य पत्थावे, पुव्वप्पणएण पव्वयगपासे । बहुसिस्सपरिवुडो नारओ गओ सगुरुपुत्तो त्ति विहिया से पडिवत्ती, पव्वयगेणं ठिया य गोट्ठीए। पत्थावे पव्वयगेण, अद्धवक्खायवेयपयं जण्णाऽहिगारसंतिय-मऽजेहिं जट्ठव्वमिति ससिस्साणं । वक्खाणियं अजेहिं, छयलेहिं इइ विमूढेणं तो नारएण भणियं, भण्णंति अजा तिवरिसपरिवसिया। इह वीहियाऽऽदओ तेहिं, चेव जट्ठव्वमाऽऽह गुरू नो पडिवण्णमिमं पव्वएण जाओ महं विसंवाओ। जिब्भच्छेयपइण्णा, कया य जो जिप्पइ वाए सहपढिओ ति वसुनिवो, एत्थ पमाणं कया इय ववत्था। अह तज्जणणी भीया, सच्चगिरं नारयं नाउं धुवमिण्हेिं मह पुत्तो, जीहच्छेएण पाविही मरणं । ता पण्णवेमि नरवइ-मिइ सा वसुमंदिरम्मि गया अब्भुट्ठिया य रण्णा, गुरुणो भज्ज त्ति तीए तो सिट्ठो । एगंते से सव्वो, नारयपव्वयगवुत्तंतो वसुणा य जंपियं अम्प!, कहसु किं एत्थ मज्झ किच्चं ति । तीए वुत्तं पुत्तो, जह जिणइ तहा करेज्जासु उवरोहसीलयाए, पडिवण्णमिमं पि वसुनरिंदेण । बीयदिवसे य दोण्णि वि, पक्खा तस्संऽतियं पत्ता काऊण सच्चसावण-मऽह भणियं नारएण भो राय ! । तुममिहई धम्मतुला, तं पढमो सच्चवाईणं ता कहसु कहं गुरुणा, अजेहिं जट्ठव्वमिइ पवक्खायं । ताहे रण्णा परिचत्त-सच्चवाइत्तवाएण जंपियमऽजेहिं छगलेहि, भद्द ! जट्ठव्वमिइ पवक्खायं । एवं भणिए कुलदेव-याए अइकूडसक्खि त्ति कुवियाए पाडिऊणं, फालियसीहासणाओ सो निहओ। अण्णे वि भूमिवइणो, तप्पयपरिवत्तिणो अट्ठ पव्वयगो वि जणेणं, धिसिक्किओ दढमऽसच्चवाइ त्ति । मरिऊण य नरयम्मि उववण्णो वसुनरेंदो वि इयरो य सच्चवाइ त्ति, नयरलोएहि विहियसक्कारो। ससिसमदित्ति कित्ति, पत्तो सुरलोयलच्छिंच बीयं पावट्ठाणग-मेवं मोसाऽभिहाणमुवइटुं । एत्तो तइयमऽदत्ता-दाणऽभिहाणं पवक्खामि पंको व्व जलं किट्टो व्व, दप्पणं चित्तभित्तिमिव धूमो। मइलेइ चित्तरयणं, परधणहरणस्स सरणं पि एयपसत्तो सत्तो, अविभावेऊण धम्मविद्धंसं। अवहत्थिऊण सप्पुरिस-सेवियं कुलववत्थं पि कित्तिकलंकं पि अपेहिऊण, अवहीरिऊण जीयं पि। गीयरवं हरिणो इव, पईवकलियं पयंगो व्व बडिसाऽऽमिसं व मीणो, भमरो कमलं व करिवहफरिसं। वणवारणो व्व पावो, परधणहरणं कुणइ सोय तज्जम्मे च्चिय पावइ, करकण्णच्छेयमऽच्छिनासं वा। करवत्तकितणं उत्ति--मंगपमुहंऽगभंगं वा परसंतियं हरित्ता, अत्थं हरिसिज्जइ नियऽत्थे य । हरिए परेण सहसत्ति, सत्तिभिण्णो व्व होइ दुही लोओ वि कुणइ पक्खं, अवरज्झंतस्स अण्णमऽवराहं । नीयल्लया वि पक्खे, न होंति चोरिक्कसीलस्स अण्णं अवरझंतस्स, ति नियए घरम्मि ओगासं । माया वि हु ओगासं, न देइ परदव्वहारिस्स जस्स य घरम्मि सो लहइ, अल्लियावं कहं पितं सहसा । पाडेइ अइमहल्ले, अयसे दुक्खे महावसणे कहकहवि किं पि सुचिरेण, विविहआसाहिं संचिणइ दव्वं । इय जो जीयसमं तं, हरेज्ज तत्तो वि को पावो संसारियसत्ताणं, पाणसमो सव्वहा इमो अत्थो। तेसिं च तं हरंतो, हरेइ तज्जीवियमऽहम्मो ॥ ५७२६॥ ॥ ५७२७॥ ॥ ५७२८॥ ॥ ५७२९ ॥ ।। ५७३०॥ ॥ ५७३१ ॥ ।। ५७३२॥ ॥ ५७३३॥ ॥ ५७३४॥ ।। ५७३५॥ ॥ ५७३६॥ ॥ ५७३७॥ ।। ५७३८॥ ॥५७३९॥ ॥ ५७४०॥ ॥५७४१॥ ॥ ५७४२॥ ॥ ५७४३॥ ॥ ५७४४॥ ॥ ५७४५ ॥ ॥५७४६॥ ॥ ५७४७॥ ॥ ५७४८॥ ॥ ५७४९ ॥ ॥ ५७५०॥ ॥ ५७५१॥ ॥५७५२॥ ॥ ५७५३॥ ॥ ५७५४॥ ॥ ५७५५ ॥ ।। ५७५६॥ ॥ ५७५७॥ ॥ ५७५८॥ ॥५७५९॥ ॥५७६०॥ ॥ ५७६१ ॥ ॥५७६२ ॥ ॥ ५७६३ ॥ १53
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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