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इइ जायतिव्वकोवेण, हणिउकामेण तस्स सीसम्मि । काऊण मट्टियाए, पाली भरिया चियऽग्गीए
॥ ५३२१ ॥ ताहे गयसुकुमालो, डझंतो तेण सीसजलणेण । आपूरियसुहझाणो, अंतगडो केवली जाओ
॥ ५३२२॥ इय अग्गी संथारो, इमस्स एत्तोय सलिलसंथारो। जस्साऽहेसि स सीसइ, अण्णियपत्तो मणिवरिंदो
।। ५३२३ ॥ सिरिपुष्फभद्दनयरे, पयंडरिउपक्खदलणदुल्ललिओ। आसी महानरेंदो, नामेणं पुप्फकेउत्ति
॥ ५३२४ ॥ देवी से पुप्फवई, तीए पुण जमलगत्तणुप्पण्णो। पुत्तोऽत्थि पुष्फचूलो, धूया पुण पुष्फचूल त्ति
॥ ५३२५ ॥ ताणि य परोप्परं गाढ-पणयवंताणि पेच्छिउँ रण्णा । अवियोगकए परिणा-वियाणि अण्णोण्णमेव तओ ॥ ५३२६॥ पुष्फवई तेणं चिय, निव्वेएणं पवज्जिउं दिक्खं । देवत्तं संपत्ता, अह सा करुणाए सुमिणम्मि
॥ ५३२७॥ नरए नेरइए वि य, दरिसइ तह तिक्खदुक्खसंतत्ते । पडिबोहणऽट्ठया सुह-सुत्ताए पुप्फचूलाए
॥ ५३२८॥ अह ते भीसणरूवे, दटुं सा झत्ति जायपडिबोहा । साहेइ नरयवित्तं, नरवइणो सो वि वाहरिलं
॥ ५३२९॥ पासंडिणो असेसे, पुच्छइ देवीए पच्चयनिमित्तं । भो! केरिसया नरया, तह तेसु दुहं? ति साहेह
॥५३३०॥ नियनियमयाऽणुरूवेण, तेहि सिट्ठो य नरयवित्तंतो। नवरं नो पडिवण्णो, देवीए तयऽणु भूवइणा
।। ५३३१॥ अण्णियपुत्ताऽऽयरियो, बहुस्सुओ विस्सुओ य थेरो य। वाहरिऊणं पुट्ठो, जहट्ठिओ तेण सिट्ठो य
॥ ५३३२॥ तो भत्तिनिब्भराए, भणियं देवीए पुप्फचूलाए। किं भयवं! तुमए वि हु, दिट्ठो सुमिणम्मि एसो त्ति
।। ५३३३॥ गुरुणा भणियं भद्दे !, जिणिंदसमयप्पईवसामत्था । तं णऽत्थि जं न नज्जइ, केत्तियमेत्तं नरयवित्तं
॥ ५३३४॥ अवरसमए य तिस्सा, तीए जणणीए दंसियो सग्गो। सुविणम्मि विम्हयाऽऽवह-विभूइरेहंतसुरनियरो
॥ ५३३५ ॥ पुव्वं पिव पुणरवि पत्थिवेण, ता जाव पुच्छिओ सूरी । तेणाऽवि तस्सरूवं, निवेइयं हरिसिया देवी
॥५३३६॥ चलणेसु णिवडिऊणं, भत्तीए जंपिउं समाढत्ता। कह होज्ज नरयदुक्खं, कह वा सुरसोक्खसंपत्ती
॥ ५३३७॥ गुरुणा भणियं भद्दे !, विसयपसत्तिप्पमोक्खपावेहिं । पाविज्जइ नरयदुहं, तच्चागेणं च सग्गसुह
॥५३३८॥ ताहे सा पडिबुद्धा वि, सम्मं मोत्तूण विसयवासंगं । पव्वज्जागहणऽत्थं, आपुच्छइ पत्थिवं तत्तो
॥५३३९ ॥ अण्णत्थ विहरियव्वं, तुमए ण कया वि इइ पइण्णाए। कहकहवि अणुण्णाया, नरवइणा विरहविहुरेण ॥५३४०॥ घेत्तूण य पव्वज्जं, विचित्ततवकम्मनिम्महियपावा। "ओमं" ति दूरदेसे, पेसियनीसेससीसस्स
॥५३४१॥ जंघाबलपरिहीणस्स, तस्स एगागिणो ठियस्स तर्हि । सूरिस्स असणपाणं, निवभवणाओ पणामेइ
॥५३४२॥ एवं वच्चंतम्मि, काले अच्चंतसुद्धपरिणामा। निद्धणियघाइकम्मा, सा पत्ता केवलाऽऽलोयं
॥५३४३ ॥ पुव्वपवत्तं विणयं च, केवली अमुणिओ न लंघेइ । इइ सा पुव्वकमेणं, गुरुणो असणाऽऽइ उवणेइ
॥५३४४॥ एगम्मि य पत्थावे, सिभेणऽब्भाऽऽहयस्स सूरिस्स । जायाए तित्तभोयण-वंछाए उचियसमयम्मि
॥५३४५ ॥ तीए य तहच्चिय पूरियाए, विम्हइयमाणसो सूरी। भणइ कहं नायमिणं, मम माणसियं तए अज्जे!
॥५३४६॥ जं उवणीयं अइदुल्लहं पि, भोज्जं अकालपरिहीणं । तीए भणियं नाणेण, केण? पडिवायरहिएण
॥५३४७॥ धी! धी! मए अणज्जेण, कहमिमो केवली महासत्तो। आसाइओ त्ति सोगं, तो सूरी काउमाऽऽरद्धो ॥५३४८॥ मा मुणिवर! कुण सोगं, अमुणिज्जंतो हु केवली विजओ। पुव्वट्टिइं न भिंदइ, एवं तीए य पडिसिद्धो ॥५३४९ ॥ चिरसचरियसामण्णो वि, किं न निव्वुइमऽहं लहिस्सामि । इइ संसयं कुणंतो य, तीए सूरी पुणो भणिओ ॥ ५३५०॥ संदेहं कीस मुणीस!, कुणसि निव्वुइकएण जेण लहुँ। सुरसरियमुत्तरंतो, काहिसि कम्मक्खयं तुमऽवि ॥ ५३५१॥ एवं निसामिऊणं, सूरी नावाए आरुहिय गंगं । अइलंघिउं पवत्तो, परतीरगमाऽभिलासेण
॥ ५३५२॥ णवरं जत्तो जत्तो, स निसीयइ कम्मदोसओ सो सो। नावादेसो मज्जइ, सुरसरिसलिलम्मि अत्थाहे
॥५३५३॥ सव्वविणासं आसंकिऊण, निज्जामगेहि तो खित्तो। अण्णियपुत्ताऽऽयरियो, नावाहितो सलिलमज्झे ॥ ५३५४॥ अह परमपसमरसपरिणयस्स, सुपसण्णचित्तवित्तिस्स । सव्वप्पणा निरुभिय-नीसेसाऽऽसवदुवारस्स
॥ ५३५५ ॥ दव्वेणं भावेण य, परमं निस्संगयं उवगयस्स । सुविसुज्झमाणदढसुक्क-झाणनिम्महियकम्मस्स
॥ ५३५६ ॥ जलसंथारगयस्स वि, अच्चंतनिरुद्धसव्वजोगस्स। मणवंछियऽत्थसिद्धी, जाया निव्वाणलाभेणं
॥५३५७॥ एवं जलसंथारय-माऽऽसज्जऽण्णियसुओ समऽणुसिट्ठो। तससंथारगविसए य, संसिओ च्चिय चिलाइसुओ ॥५३५८ ॥
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