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________________ जह कुसलो वि हु वेज्जो, अण्णस्स कहेइ अप्पणो वाहि। सोऊण तस्स वेज्जस्स, सो वि किरियं समाऽऽरभइ ॥ ४९८६ ॥ एवं जाणंतेण वि, पायच्छित्तविहिमऽप्पणो सम्मं । तहवि य पागडतरयं, आलोएयव्वयं गुरुणो ॥ ४९८७॥ आलोयणं अदाउं, सइ अण्णम्मि वि तहऽप्पणो दाउं। जे विहु करेंति सोहिं, ते विन आराहगा होति ॥ ४९८८॥ एत्तो च्चिय सोहिकए, गीयस्सऽण्णेसणा उ उक्कोसा। जोयणसयाणि सत्त उ, बारस वरिसाणि कायव्वा ॥४९८९॥ आलोयणाअदाणे, दोसा इइ वण्णिया समासेणं । वोच्छामि अओ उड्ढं, जे उ गुणा होंति दाणम्मि ॥ ४९९० ॥ लहुया ल्हाईजणणं, अप्पपरनियत्ति अज्जवं सोही। दुक्करकरणं विणयो, निस्सल्लत्तं च सोहिगुणा ॥ ४९९१॥ इह कम्मचओ भारो, भंजइ जीवे स जेण अच्चत्थं । भग्गा य तेण सिवगइ-गमणम्मि ण पच्चला होंति ॥ ४९९२ ॥ वियडंतस्स उ दोसे, असंकिलिट्ठस्स सुद्धभावस्स। सो परिहायइ बहुसो, पुव्वचिओ कम्मगुरुभारो ॥ ४९९३॥ तह भावओ य गुरुई, चारित्तगुणे पडुच्च जीवाणं । सिवगतिकारणभूआ, जायइ परमत्थओ लहुया ॥ ४९९४॥ जह जह सुद्धसहावो, दोसे वियडेइ सम्ममुवउत्तो । तह तह पल्हाइ मुणी, नवनवसंवेगसद्धाओ ।। ४९९५ ॥ पत्तो मया सुवेज्जो, दुलहो एसो य भाववाहिम्मि। लज्जाऽऽइया य तुच्छा, वाहिस्स विवड्डया घोरा ॥ ४९९६॥ ता वियडिऊण सम्मं, इमस्स चलणंतियम्मि धण्णस्स । काहामि अप्पमत्तो, भवदुक्खनिवारणि किरियं ॥ ४९९७॥ तह वियडिए य ल्हाई, उप्पज्जइ एव सुद्धभावस्स । धण्णो हं भवगहणे, जेण मए सोहिओ अप्पा ॥ ४९९८॥ न कुणइ अओऽवराहे, चरणाउ लज्जओ य किच्चाणं । पायच्छित्तभएण य, नियत्तिओ एवमऽप्पा उ ॥ ४९९९ ॥ ट्ठण तं सुसाहुं, एव जयंतं परे वि भयभीया । न कुणंति अकिच्चाई, सेवंति य नवरं किच्चाई ॥ ५०००॥ अप्पपरनियत्तीए, एवं सपरोवयारभावो उ। न य सपरुवगाराउ, महल्लतरयं गुणट्ठाणं ॥५००१॥ आलोयणाए अज्जव-सोहीओ परमनेव्वुइकरीओ। भवभयनिवारणीओ, पण्णत्ता वीयरागेहि ॥५००२॥ सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ । निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्ते व्व पावए ॥ ५००३॥ णियडीकिलिट्ठचित्तो, बंधइ कम्मं किलिट्ठमेव बहुं । जीवो पमायबहुलो, किलिट्ठकम्मस्स य नियाणं ॥ ५००४॥ अइसंकिलिट्ठकम्माऽणु-वेयणे जो उ होइ परिणामो। सो संकिलिट्टकम्मस्स, कारणं जमिह पाएणं ॥ ५००५ ॥ तत्तो य भवविवड्डी, तओ य दुक्खाइं णेगभेयाइं। इइ संकिलेसमूलं, नियडि च्चिय होइ नायव्वा ॥५००६॥ उम्मूलणेण तीसे, संजायइ अज्जवं जओ तेण । आलोयण दायव्वा, सोहिनिमित्तं च जीवस्स ॥ ५००७॥ दुक्करकरणं च इमं, जं सेविज्जइ सुहं पमाएण । दुक्खं आलोइज्जइ, जहट्ठियं कम्मदोसाओ ॥५००८॥ लज्जाअभिमाणाऽऽइ-महाबले णेगभवसयऽब्भत्थे। वियडंति जे अगणिउं, ते दुक्करकारया लोए ॥ ५००९॥ पाविति वि ते चेव य, अकलंकाऽऽराहणं महासत्ता । भवसयविवागमहणि, जे आलोयंति इय सम्म ॥ ५०१०॥ तित्थयराऽऽणापालण-गुरुजणविणओ य सेविओ होइ । आलोयणापयाणे, सम्मं नाणाऽऽइविणओ य ॥५०११ ॥ "विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे। विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो को तवो ॥ ५०१२॥ तम्हा विणयइ कम्मं, अट्ठविहं चाउरंतमोक्खाए । तम्हा उ वयंति विऊ, विणयो त्ति विलीणसंसारा ॥५०१३॥ जं जायइ निस्सल्लो, नियमा आलोइऊण जइसत्थो। नो अण्णह त्ति तम्हा, निस्सल्लत्तं गुणो तीए ॥५०१४॥ न ह सुज्झइ ससल्लो, जह भणियं सासणे धुयरयाणं । उद्धरियसव्वसल्लो, सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ॥५०१५॥ तो उद्धरंति गारव-रहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं, मायासल्लं नियाणं च ॥५०१६॥ उद्धरियसव्वसल्लो, आलोइयनिदिओ गुरुसयासे । होइ अइरेगलहुओ, ओहरियभरो व्व भारवहो ॥ ५०१७॥ आलोयणागुणा खलु, इइ एवं वण्णिया समासेणं । एत्तो जह दायव्वा, तह वोच्छं तत्थिमा मेरा ॥५०१८॥ वक्खेवविरहिएणं पसत्थदव्वाऽऽइजोग सुदिसाए। विणएण मुज्जुणाऽऽसे-वणाऽऽइलोमेण छस्सवणा ॥ ५०१९ ॥ वक्खेवविरहिएणं, निच्चं चिय जइजणेण होयव्वं । मोत्तूण संजमपयं, विसेसओ वियडणाए उ ॥ ५०२० ॥ बिहिं तिहिं वा दिवसेहिं, दायव्वाऽऽलोयण त्ति तो सम्मं । सुत्तविउद्धो हियए, अवराहपए निवेसेज्जा ॥५०२१ ॥ तो ऋजुभावमुवगओ, सव्वे दोसे सरित्तु तिक्खत्तो। लेसाहिं विसझंतो, उवेइ सल्लं समद्धरिलं । ५०२२ ॥ पच्चाऽऽगयसंवेगो, सम्मं वियडेज्ज तह जहा कम्मं । परिणामविसेसेणं, छिदेज्ज भवंतरकयं पि ॥५०२३॥ १४३
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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