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समहियमुत्तपुरीसो, जो परिमियभत्तपाणभोई वि । इय विवरीओ जो वा, तस्साऽऽसण्णं मुणसु मरणं
।। ३२४०॥ पुव्वं सुविणीओ वि हु, सगुणस्स वि जस्स परियणो सहसा। विवरीयं परिचिट्ठइ, तं पि वियप्पेसु अप्पाउं ।। ३२४१॥ न गयणगंगं पेच्छइ, पेच्छइ य दिवा य तारए जो य। सुरजाणविमाणाणि य, सो वि समासण्णजमनिलओ ।। ३२४२॥ एकं व दो बहूणि व, रविससिबिंबेसु तारएसुं वा । जो पेच्छइ छिड्डाई, जाण तदाऽऽउं वरिसमेक्कं
।। ३२४३ ॥ उभयकरऽगुट्ठट्ठइय-कण्णकुहरो न निसुणइ जो य। नियकण्णाणं घोसं, सो मरइ सत्तदिणमज्झे
। ३२४४॥ दाहिणकरनिबिडकंत-वामहत्थंगुलीण पव्वग्गा । जस्साऽरुणा न दीसंति, तस्स वि जाण लहु मरणं ॥ ३२४५॥ मुहदेहवणाईसुं, अईव इट्ठो दढं अणिट्ठो वा । जस्सुच्छलइ अहेऊ, गंधो सो वि हु लहुं जाइ
॥ ३२४६॥ जायइ मुणालसीयल-मंऽगमऽकम्हा सउम्हमऽवि जस्स । जमरायरायहाणी-पंथपयट्टो लहुं सो वि
॥ ३२४७॥ पस्सेयहेउगेहे, होउं निच्चं निएज्ज नियभालं । जइ ता न होइ सेओ, ता जाण जहाऽऽगओ मच्चू
॥ ३२४८॥ जस्स य सुक्का विठ्ठा, निट्ठयं च लहुँ बुड्डइ जलम्मि। सो पुरिसो मासेणं, पासेणं वच्चइ जमस्स
॥ ३२४९ ॥ जूया व मच्छिया वा, निरंतरं जे भयंति पच्छा वा । उवसप्पंति य तं काल-कवलियं कुसल! कलसु लहुँ ॥ ३२५०॥ विज्जं पुरंदरधणं, धणियमऽमेहे वि नहयले नियइ । सुणइ य गज्जियसई, जो सो लहु जमपुरपवेसी
॥ ३२५१॥ जस्स सिरे कागोलूग-कंकप्पमुहा पलासिणो विहगा। सहसाऽऽवडंति सो जाइ, जमगिहे थोवदिवसेहि ॥३२५२॥ विच्छाए पेच्छंतो, रविससितारागणे जियइ वरिसं। अह सव्वहा न पेच्छइ, अच्छइ छम्मासमेव जइ
॥ ३२५३॥ तह ससिरविबिंबाणं, भूपडणं पासइ अकम्हा जो। निस्संसयं वियाणसु, बारस दिवसाणि तस्साऽऽउ ॥ ३३५४॥ जो पुण दो रविबिबे, पासइ नासइ स मासतियगेण । रविबिम्बमंऽतरिच्छे, पेच्छइ भमिरं अह लहुं ता ।। ३२५५॥ सूरस्स अप्पणो वा, जो जुगवं नियइ चउसु वि दिसासु । रविबिम्बाणि तदाउं, दिणाण घडियाण व चउक्कं ॥ ३२५६॥ सव्वंगं व नियंतो, छिडुं मायंडमंडलमऽकंडे। नणु सग्गमग्गलग्गो, दसदिवसऽब्भन्तरे नेओ
॥ ३२५७॥ जियइ तिदिणं स सव्वं, पासइ पीयं पयत्थसत्थं जो। जस्स य कसिणं भिण्णं, हवइ पुरीसं स लहुमरणो ॥ ३२५८॥ बद्धद्धचक्खुलक्खो, निरिक्खमाणो वि न य नियं नियइ । भुमयाण जुयं जो सो, नवदिवसऽब्भंतरे मरइ ।। ३२५९ ॥ भालुवरि धरियहत्थो, पयइत्थं चेव नियइ मणिबंधं । जो न पुण अइकिसतरं, तरसा सो वि हु मरणसरणो ॥ ३२६०॥ न नियइ नियनयणाणं, अग्गंगुलिघट्टियऽच्छिपेरंतो । जो जोइं जाइ जमा-ऽऽणणं स नियमा दिणतिगंऽते ॥ ३२६१ ॥ वामऽच्छिणो न पेच्छइ, अह रुद्धाऽवंगकोणजोइं जो । तं पि कमेण वियाणसु, छत्तिदुमासेक्कमासाऽऽउं ॥ ३२६२॥ अह तं सकरंऽगुलिचंपियस्स, इयरऽच्छिणो न पेच्छइ जो। दस पंच तिण्णि दो वासरे उ तज्जीवियं जाण ॥३२६३ ॥ अणविक्खियऽण्णलक्खं, अहोमुहाऽऽवडियलोयणद्धउडं। परिमंथरथिरतारं, नासग्गाऽऽसंगिदिट्ठिजुयं ॥ ३२६४ ॥ जह होइ तहा निययं, निययं जो नासियं नियंतो वि। न हु पिच्छइ सो गच्छइ, हत्थं पंचाऽहमित्तेण
। ३२६५ ॥ एवं चिय जीहग्गं, नियगमुहा निग्गयं नियंतो वि । जो न हु पिच्छइ अच्छइ, सो परमेगं अहोरत्तं
॥३२६६॥ तह भूमिगाऽणुरूवं, होऊणं परमव्वभावसुई। काऊण परमपूयं, परमगुरूणं परमविहिणा
॥३२६७॥ सुक्किलपक्खं दक्खिण-पाणि परिकप्पिडं कमेण पुणो । हेट्ठिममज्झिमउवरिम-पव्वाणि कणिट्ठियाए य ॥ ३२६८॥ पडिवयछट्ठिक्कारसि-तिहीओ परिकप्पिउं पयाहिणओ। सेसंगुलिपव्वेसु तु, सेसतिहीओ वियप्पेज्जा ॥ ३२६९॥ पंचमीदसमीपुण्णिम-तिहीओ ता जाव ठविय अंगुटे। एवं वामकरे पुण, परिकप्पिय कसिणपक्खकमं ॥३२७०॥ ता जाव तदंगुटे, उवरिमपव्वे अमावसाऽऽईए। एवं तीस तिहीओ, परिकप्पित्ता जहाभणियं
॥ ३२७१ ॥ तत्तो विवित्तदसे, निबद्धपउमासणो महासत्तो। बद्धकरकमलकोसो, पसण्णथिरमणवईकाओ
॥ ३२७२॥ झाएज्ज कसिणवण्णं, सुण्णं करकमलकोसमज्झगयं । सियवत्थछाइयऽप्पा, सुबद्धलक्खो तहिं चेव ॥ ३२७३ ॥ उग्घाडिय करकमलं, पलोइओ जीए कीए वि तिहीए। दीसइ स कालबिंदू, सो कालो नत्थि संदेहो
॥ ३२७४॥ जम्मन्तरलक्खेण वि, न मुणिज्जइ कह वि अप्पणो अप्पा । सयलसमयण्णुणा वि हु, सिरिगुरुवयणं पमोत्तूणं ॥३२७५ ॥ इय कालचक्कसारं, गाहादसगेण वण्णियमिमं च । पडिवयदिवसे झायह, जि पेच्छह आगयं मच्चुं ॥ ३२७६ ॥ १. जि = यथा,
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