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________________ गाथा- ४३-५० परिशिष्टम् - १ मंतम्मि पुव्वसेवा, जइ तुच्छफले वि वुच्चइ इहं ता । मोक्खफले वि उवहाणलक्खणा किं न कीरई सा ॥२० / ४३ ॥ एइए परमसिद्धी, जायइ जं ता दढं तओ अहिगा । जत्तम्मि वि अहिगत्तं, भव्वस्सेयाणुसारेण ॥२० / ४४ ॥ अह सक्कविरयणाओ, सक्कत्थय नोवहाणमुववन्नं । एवं पिकेण सिट्ठे, जमेस सक्केण रइउत्ति ॥२०/४५॥ सक्क्स्स अविरइत्ता, जिणथुई जइ अणेण णुन्नाया । ता तक्कओ त्ति सो वुत्तुमेवमुचियं कहं तम्हा ॥२०/४६॥ केवलिणा दट्ठूणं, उवइट्ठाणं च विरइयाणं च । नवकारमाइयाणं, महाप्पभावोववेयाणं ॥ २०/४७॥ तिक्कालियमहवा सत्तकालियं सुमरणे निउत्ताणं । जुत्तं चिय उवहाणं, महानिसीहे निबद्धाणं ॥ २०/४८॥ उवहाणविहीणाण वि मरुदेवाईण सिवगमो दिट्ठो । एवं च वुच्चमाणे तवदिक्खाईण वि निसेहो ॥२० / ४९ ॥ इय भूरिउजुत्तीजुयम्मि बहुकुसलसलहिए मग्गे । कुग्गहविरहेणुज्जमह महह जइ मुक्खसुहमणहं ॥२०/५० ॥ २६४
SR No.022282
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmratnavijay
PublisherManav Kalyan Sansthanam
Publication Year2014
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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