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गाथा-२१-३१
परिशिष्टम्-१ अह पंचनमोक्काराइयाणमुवहाणमणुचियं भिनं ।। आवस्सयस्स अंतो, पाढाहि तहाहि सामइयं ॥२०/२१॥ नवकारपुव्वयं चिय, कीरइ जं ता तयंगमेसो त्ति । अन्नं च इत्थ अत्थे, पयडं चिय कित्तियं एयं ॥२०/२२॥ नंदिमणुओगदारं, विहिवहुवग्याइयं च नाऊण । काऊण पंचमंगलमारंभो होइ सुत्तस्स ॥२०/२३॥ इय सामाइयनिजुत्तिमज्झमज्झासिओ इमो ताव । पडिकमणे य पविट्ठो, इरियावहियाए पाढो वि ॥२०/२४॥ अरहंतचेइयाण य, वंदणदंडो सुयत्थओ य तहा । काउस्सग्गज्झयणे, पंचमए अणुपविट्ठो त्ति ॥२०/२५॥ बीयज्झयणसरूवे, चउवीसत्थओ वि जं विणिदिछो । आवस्सयाउ न पिहो, जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं ॥२०/२६॥ आवस्सयउवहाणे, ताण उवहाणं कयं समवसेयं । कयउवहाणे य पिहो, तक्करणे होइ अणवत्था ॥२०/२७॥ भन्नइ उत्तरमिहइं, नवकारो आइमंगलत्तेण । वुच्चइ जया तय च्चिय, सामाइएऽणुप्पवेसो से ॥२०/२८॥ जइया य सयण-भोयण, निज्जरहेउं पढिज्जए एसो । तइया सतत एव हि, गिज्झइ अन्नो सुयक्खंधो ॥२०/२९॥ इह-परलोयत्थीणं, सामाइयविरहिओ वि वावारो। दीसइ नवकारगओ, तदत्थसत्थाणि य बहूणि ॥२०/३०॥ नवकारपडल नवकारपंजिया सिद्धचक्कमाईणि । सामाइयंगभावो, इमस्स गंतिओ तम्हा ॥२०/३१॥