SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रिय, स्थावर; आतप, उद्योत, तिर्यचद्विक अने तिर्यचायुष्य ए सोल विना १०४ प्रकृति बधमां होय ।। . (बधाधिकार समाप्त ।) हवे १४ गुणस्थानोमां उदय कहे छे१२२. उदये सम्यक्त्वमिश्र अपि ।। उदय एटले अनुभवथी कर्मनु भोगवावु. बंधमां ओधे १२० प्रकृतिओ होय छे. ज्यारे उदयमा समकितमोहनीय अने मिश्रमोहनीय ए बे प्रकृतिओ पण होय छे. एथी उदयमां ओघे १२२ होय छे. १२३. अजिनाहारकद्विकमिश्रसम्यक्त्वोऽसूक्ष्मत्रिकातप मिथ्यात्वोऽनरकानुपूवी कोऽननन्तकषायस्थावरैकविकलाक्षानुपूर्वी त्रिकःसमिश्रोऽ मिश्रः ससम्यक्त्वानुपूर्वी चतुष्कोऽ प्रत्याख्याननरतिर्यगानुपूर्वी वैक्रियद्विकसुरनरकत्रिकदौर्भाग्यानादेयद्विकोऽ'तिर्य ग्गत्यायुनी चोद्योतप्रत्याख्यानावरणसाहारकद्विकोऽस्त्यानर्द्वित्रिकाहारकद्विको सम्यक्त्वान्त्यसंहननत्रिकोऽ"हास्यषट्को-5 °वेद संज्वलनत्रिकोऽ'लोभोऽनृषकाऽन्त्येभद्विकोपान्त्योऽनिद्राद्विकोऽन्त्योऽ' ज्ञानान्तरायपञ्चकदर्शनचतुष्कः सजिनोऽ नौदारिकास्थिरगमद्विकप्रत्येकत्रिकसंस्थानषट्कागुरुवर्णचतुष्क
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy