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________________ ૧૯ अने मिश्रदृष्टिमां अनुक्रमे पहेलुं बीजु अने त्रीजु गुणस्थान. देशविरतमां पांच सूक्ष्मसंपरायचारित्रमां दशमं गुणस्थान. मनोयोग, वचनयोग, काययोग, आहारमार्गणा अने शुक्ललेश्यामां प्रथमना तेर गुणस्थान. असंज्ञिमां प्रथमनां बे. कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यामां प्रथमना छ. पद्म अने शुक्ललेश्यामां प्रथमना सात. अनाहारमां प्रथमना बे, छेल्लां बे सहित अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानक होय छे. . हवे मार्गणास्थानोमां योग कहे छे ६५. अनाहारे, नरगति - पञ्चेन्द्रिय- त्रस - काया - ऽचक्षु-र्नरनपुंसक - कषाय - क्षायिक - क्षायोपशमिकसम्यक्त्वसञ्ज्ञि - लेश्याषट्काऽऽहार - भव्य -मति - श्रुताऽ-वधि - द्विके, तिर्यगयत स्त्री - सास्वादन - त्र्यज्ञानोपशमाऽभव्य - मिथ्यात्वे सुरनरके स्थावर एकाक्षे पवनेसञ्ज्ञिनि विकले मनो- वचः - सामायिक-च्छेदचक्षु - मनोज्ञाने केवल द्विके परिहार - सूक्ष्मे मिश्र देशे यथाख्याते कार्मण - सर्वा - ssहारकद्विकोनौ-दारिकद्विकोन - कार्मणौदारिकद्विक - सवैक्रियद्विका - ऽन्त्यवाग्युग् - वैक्रियद्विकोना - Sकार्मणौदारिक मिश्र - साद्याऽन्त्यमनोवागौदा
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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