SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ - पञ्च- चतुः - सर्व- द्वये - क- नव- दश- चतु - त्रिद्वादशा- न्त्यचतु- र्यतादिसप्त - चतु - द्वन्त्यद्वायता दिनवा - ट - चतु - रेकादशाऽऽद्य - त्रि-स्व-स्वत्रयोदश-द्वि-षट् - सप्त - प्रथमान्त्ययुग्म - युगयत इति गुणाः । मान तिर्यंचगतिमां प्रथमना पांच गुणस्थान. देवगति अने नरकगतिमां प्रथमना चार गुणस्थान. मनुष्यगति, संज्ञिपंचेंद्रिय, भव्य अने त्रसकायमां बधा गुणस्थान. एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, पृथ्वीकाय, अपूकाय अने बनस्पतिकायमां प्रथमना बे गुणस्थान. तेउकाय, वायुकाय अने अभव्यमां प्रथमनुं एक गुणस्थान. त्रणवेद - स्त्रीवेद पुरुषवेद नपुंसक वेद, क्रोध, अने मायामां प्रथमना नव. लोभमां दश. अयत-अविरतमां प्रथमना चार मति अज्ञान, भुत अज्ञान अने विभंगज्ञानमां प्रथमना त्रण. चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शनमां प्रथमना बार गुणस्थान. यथाख्यातचारित्रमां ल्हां चार गुणस्थान. मन -: पर्यायज्ञानमां प्रमत्त आदि सात गुणस्थान. सामायिक अने छेदोपस्थापनीयचारित्रमां प्रमत्तआदि चार परिहारविशुद्धिचारित्रमां प्रमत्तआदि थे. केवलज्ञान अने केवलदर्शनमां छेल्लां बे गुणस्थान. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने अवधिदर्शमां अविरतसम्यग्दृष्टि आदि नव. औपशमिकसम्यक्त्वमां अविरत सम्यग्दष्टि आदि आठ. वेदक-क्षयोशम - सम्यक्त्वमां अविरतसम्यग्दृष्टि आदि चार, क्षायिकसम्यक्त्वमां अविरतसम्यग्दृष्टि आदि अगियार. मिथ्यात्वत्रिक - मिथ्यात्व, साम्बादन ·
SR No.022252
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy