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________________ व्रत-नियम केई करंता, तुज भक्ति चित्त धरता; गुरुमंदिर केई करावे, तुज मूरति तिहां पधरावे...॥८॥ बहु भव्य जीवो तिहां आवे, तुज दर्शन ध्यान लगावे; नाममन्त्र जपे गुरु ! तुज, याचे गुणगण देजो मुज...॥९॥ इम विरणे पण जे थावे, तुम अद्भुत माहात्म्य जणावे, एम गाई जगत गुणगान, पामे सुख सदाय अमान...॥१०॥ (कलश) सेवी गुरुपद वर्ष षोडश, 'कृपाभर तस पाईने, कर्मसाहित्य नूतन हेतु, पिंडवाडा ठाईने; दोयसहसपचवीस विक्रमाब्दे, "राधमासे निर्मलो, कृष्ण एकादशीए गायो, प्रेमसूरि गुरु जग भलो ॥१॥ तस शिष्य भानुविजय गुरुपद,-पङ्कजे जे मधुकरो, पंन्यास प्रवरो निपुण न्याये, शिष्य तस गुण-आकरो; पंन्यास पद्मविजय स्वर्गत, साधुशिक्षण-कुशलो, तस शिष्य गुरुपदपद्म-अलिसम, जगच्चन्द्र मुनिपदधरो ॥२॥ . मला, ॥ समाप्त ॥ १ सोळवर्ष २ परमकृपा । ३ विक्रमसंवत् । ४ वैशाखमास ।
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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