SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . [९] इत्यादिक विलपन बहु, करी तुज गुणना जाण, गुण-पक्षपाते करी, करे निज कर्मनी हाण. १ (दुहो) तुज विरहालंबन ग्रही, भवि करे धर्म विधान, लेशथी ते अब वर्णवं, सुणजो थई सावधान. २ (दुहो) (राग-नवो वेश रचे तिणि वेळा, विचरे आदीश्वर भेळा...) हवे अवसर जाणी ताम, तुम शिष्य वडेरा राम, परिष्ठापन विधि जेह, करे देह तणी तुज तेह...॥१॥ श्रावकसंघने देह ते दीधो, शोक-भक्ति हैये तेने लीधो, स्थाने स्थापी निशिओ कीध, नमस्कारादि धून विविध...॥२॥ गाम नगरमां दूर सुदूर, वात प्रसरतां उलट्यां पूर, संघ आवी पड्या तव पाय, रज चरणनी शिरे लगाय...॥३॥ हवे उचित जेह आचार, करे संघ सकल सुविचार, देह-अंतिमक्रिया करंता, मन भक्ति-भावे भरंता...॥४॥ धरी तन मन अति उल्लास, धनव्यय करे बहु राश, दानाधिक विविध करंता, 'जय ! जय नंदा' अम भणंता...॥५॥ थयो प्रवचन जय जय कार, केई धर्म पाम्या निरधार; एम तन मन धन शुभ योग, साध्यो अशुभ करम वियोग...॥६॥ तुज गुणानुमोदन काज, गाम-नगरना जैन समाज; जिन-भक्ति-महोत्सव मोटा, करता जस न दीसे जोटा...॥७॥ ९४
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy