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________________ गुणनिधि ! तुमे, अम निर्गुण आधार जो...... अहो ० ॥ १॥ सूरिवर ! तुम विण, जग सघळं सुनुं थयुं, तुम विण प्रसर्यो, चउदिशिओ अंधकार जो, जगवत्सल ! अम चारित्र - चक्षु-तारका सार्थपति अम मोक्षनगरनी वाट जो...... अहो० ॥२॥ कर्मरिपु यो धंतां, अम सेनापति, सारथी: तुमे, संयमरथना प्रौढ जो, दीवादांडी, अम संयम - नावा तणी, तुं हिज प्राण ने, तुं हिज अम हृदयेश जो......अहो० ॥३॥ कहो थयो शो अवगुण ? जे बोलो नहि, थयो हशे पण, आप महा उदार जो, माफ करी ते, श्रवणे धरो अम वातडी, क्षमानिधि ! तुमे, छोडो नहि अम बांह्य जो...... अहो० ॥४॥ मात विणा कहो ? बाल तणी किशी दशा, पडे आखडे अटवाये, नहि भान जो, स्वामी ! तुम विण, तिम जंगत आपद घणी, दुर्गति खीणे पात अने विखवाद जो ...... अहो ! अहो० ॥५॥ विषयविष भखंता, कहो ? कुण वारशे, प्रमाद कूप पडतां राखशे अम जो, स्वाध्यायसुधा ढोळंतां अम मूर्खने, हाथ झाली कहो ? वारण करशे कुण जो...... अहो ! अहो० ॥६॥ प्रेरणा - वमनी, - फल - घसारो पाईने, ९१
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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