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विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. श्रीना प्रशिष्य स्व. पू. पंन्यासजी श्री पद्मविजयजी गणिवरना शिष्यरत्न पू. मुनिराज श्री जगच्चन्द्रविजयजी महाराजश्रीए करेल छे अने संशोधन उपरोक्त पू. आचार्यदेवेश तथा पू. मुनिराज श्री जयघोषविजयजी म. तथा पू. मुनिराज श्री धर्मानन्दविजयजी म. आदि मुनिवरोए करेल छे.
तत्त्वज्ञानने लगता आवा ग्रन्थोनी रचना अने संशोधन करवाथी आत्मा स्वाध्याय नामक अभ्यंतर तपमां रत बने छे, विभावदशाथी दूर रही स्वभावदशामां रमणता करे छे अने ते द्वारा अनंता कर्मोनो क्षय करी अपूर्व निर्जरानो भागी बने छे.
आ ग्रन्थनुं संयोजन - संपादन करनारा मुनिपुंगवो स्वात्मकल्याण साधवा साथे आ विषयना जिज्ञासु अनेक आत्माओने उपकारक बन्या छे.
प्रकरणनी प्राकृत भाषामां रचेली मूळगाथाओ अने तेना पर संस्कृत भाषामां रचेली टीकानुं निरीक्षण करतां ते अभ्यासीओने कंठस्थ करवामां तथा वांचवा समजवामां घणी अनुकूल रहेशे तेम जणाई आवे छे.
तेओ उत्तरोत्तर कर्मसाहित्यादि जुदाजुदा विषयो उपर पोताना अध्ययन द्वारा प्राप्त थयेली विशिष्टताओने सरळ सुबोध भाषामां रजु करी स्व-पर कल्याण साधे अने जिज्ञासु मुमुक्षु जनो तेनो लाभ उठावे ओज अंतःकरणनी अभिलाषा.
पालीताणा
वि.सं. २०२३
वैशाख वद ११ ता. ३-६-६७
लि.
कपूरचन्द रणछोडदास वारैया
अध्यापक
श्री जैन सूक्ष्मतत्त्वबोध पाठशाला
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