________________
आराहणापणगं (४) धम्मेण होइ सुगई देहो वि विलोट्ठए मरणकाले । तह वि कयग्धो जीवो देहस्स सुहाइं चिंतेइ ॥१९५|| छारस्स होइ पुंजो, अहवा किमियाण सिलिसिलेंताण | सुक्खइ रविकिरणेहि वि, होहिइ पूयस्स व पवाहो ||१९६|| भत्तं व सउणयाणं, भक्खं वा साण-कोल्हुयाईणं । होहिइ पत्थरसरिसं अव्वो ! सुकं व कटुं वा ॥१९७|| ता एरिसेण संपइ अहमसरीरेण जइ तवो होइ। लद्धं जं लहियवं मा मुच्छं कुणसु देहम्मि ॥१९८|| अवियदेहेण कुणह धम्मं अंतम्मि विलोट्टए पुणो देहं । फग्गुणमासं खेल्लह परसंतेणेव पिटेणं ॥१९९|| ताविज्जउ कुणह तवं भिण्णं जीवाओ पुग्गलं देहं । कट्ठजलंतिंगाले परहत्थेणेव तं जीव ! ॥२००|| देहेण कुणह धम्म अंतिम्म विलोट्टए पुणो एयं । उट्टस्य पामियंगस्स वाहियं जं तयं लद्धं ||२०१||