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आराहणापणर्ग (४) खरखारमूलदड्ढो पंसुलि-समणी-कुमारी-रंडाणं । गलिओ लोहियवाहा बहुसो हं नवर संसारे ॥१३८|| कत्थइ भएण गलिओ, कत्थइ आयास-खेयवियणत्तो । कत्थइ जणणीए अहं फालियपोट्टाए गयजीवो ||१३९|| कत्थइ दरनीहरिओ जणणीजोणीए हं मुओ बहुसो । कत्थइ नीहरिओ च्चिय गुरुवियणाभिंभलो गलिओ
||१४०|| कत्थइ जणणीए अहं ठइयमुहो थणमुहेण वहिओ हं। कत्थइ पक्खित्तो च्चिय सवसयणे जीवमाणो वि||१४१|| जायावहारिणीए कत्थइ हरिओ मि छट्टदियहम्मि | कत्थइ बलि च्चिय कओ जोगिणिसमयम्मि जणणीए
||१४२|| कत्थइ पूयणगहिओ, कत्थइ सउणीगणेण गहिओ हं। कत्थइ बिरालिगहिओ हओ मि वालग्गहगहेणं ||१४३|| कत्थइ खासेण मओ, कत्थइ सोसेण सोसियसरीरो। कत्थइ जरेण वहिओ, कत्थइ उयरेण भग्गो हं ||१४४| कत्थइ कुटेण अहं सडिओ सब्बेसु चेव अंगेसु। कत्थइ भगंदरेणं दारियदेहो गओ निहणं ||१४५||