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________________ अथ पापोत्पत्तिकारण नामाख्यं नवमोल्लास: : 253 अधुना पापफलमाह - पापात्पङ्गुः कुणिः पापात्यापाद्विषयलोलुपः। दुर्भगः पुरुषः पापात्पापात्षण्ढश्च दृश्यते॥12॥ मनुष्य अपने पूर्वजन्म में किए गए पाप से पङ्गु, टूठ, बहुत विषयी, दुर्भाग्यशाली और नपुंसक होता है। प्रेष्यः पापान्मली पापात्कुष्ठी पापाजनो भवेत्। पापादस्फुटवाक्यापान्मूकः पापाच्च निर्धनः ॥13॥ मनुष्य अपने पाप कर्मों से ही दूसरे का दास, मलीन, कुष्ठरोगी, अटककर बोलने वाला, गूंगा और दरिद्री होता है। जायते नारकस्तिर्यगं कुलीनो विमूढधीः। चतुर्वर्गफलैर्वन्ध्यो रोगग्रस्तश्च पापतः॥14॥ मनुष्य अपने पाप से ही नारकीय, तिर्यक, हीन कुलगत, मतिमन्द और धर्म, ' अर्थ, काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थ से भ्रष्ट और रोगी होते हैं। यदन्यदपि संसारे जीवः प्रापोत्यसुन्दरम्। तत्समस्तं मनोदःख हेतः पापाविजम्भितम्।। 15॥ इस जगत् में अन्य भी जीव को जो बुरा और मन को कष्ट देने वाला होता है, ऐसे में सब पापों को कैसे जाना जा सकता है। । उपसंहरन्नाह - इति गदितमशेषं कारणं पातकस्य प्रतिफलमपि तस्य श्वभपातादि दुष्टम्। सकलसुखसमूहोल्लासकामैर्मनुष्यैर्न खलु मनसि धार्यः पापहेतूपदेशः॥16॥ इस प्रकार से इस उल्लास में पापोत्पत्ति के कारण और उसके नरक में गिरने, दुष्ट फलादि को कहा गया है। जो पुरुष समस्त सुख-समुदायोदय की अभिलाषा करते हैं, उनको पाप के हेतुभूत मन्तव्यों को मन में धारण नहीं करना चाहिए। इति श्रीजिनदत्तसूरि विरचित विवेकविलासे पापोत्त्पत्तिकारणं नाम नवमोल्लासः॥9॥ इस प्रकार श्रीजिनदत्तसूरि विरचित 'विवेक विलास' में पापोत्पत्तिकारण संज्ञक नवाँ उल्लास पूर्ण हुआ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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