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________________ "गुरुदेव ! मैं इसका कुछ दिन अनुसरण करूँ ? यदि इसकी मति पलटेगी तो इसे संघ में ले आऊँगा। इसे आज के जमाने की हवा जो लगी है।" "मुनिजी ? युगवीर मुनि ने साधकदशा का स्पर्श तो किया है। परन्तु इन्हें अपनी शिक्षा का-बुद्धि का तीव्र अहंकार है। इसलिये निकट भविष्य में ये मार्ग पर आयें यह संभव नहीं लगता। क्योंकि आज श्रावक-वर्ग में स्वच्छन्दता का पोषक वर्ग भी है।" "गुरुदेव ? मात्र कर्तव्य बजाना है।" गुरुदेव ने कोई उत्तर नहीं दिया । पिता-पुत्र दोनों मुनियों ने विहार कर दिया-अलग। युगवीर मुनि को श्रावकवर्ग से अति सहयोग मिला । उन्होंने डाक्टरेट की । डॉ. युगवीर मुनि जिधर भी विहार, करते, उधर शिक्षित वर्ग में धूम मच जाती । उन पर प्रशंसा के पुष्पों की खूब वर्षा की जाती। वे फूले नहीं समा रहे थे। वे अपने प्रवचन में प्रायः कहा करते थे-'भगवान् महावीर की साधना-पद्धति बीच के युग में लुप्त हो गयी। आज के साधु क्रिया-काण्ड में फंसे हुए हैं। इनके पास ध्यान-पद्धति है ही नहीं । भगवान की ध्यान-पद्धति को खोजनी होगी और उसे साधना में पुनः प्रतिष्ठित करनी होगी। तभी साधना में ओज आयेगा।' और वे लग गये ध्यान की खोज में। उनके हाथ लगी 'बौद्धों की 'आन पान सति' और 'विपस्सना'। उन्हें लगा कि ध्यान की लुप्त कड़ी मिल चुकी है। ____ उन्हें लगा कि सकल सत् क्रियाएँ वृथा कर्मकाण्ड हैं। वे खुलकर विद्युद्दीप का उपयोग करते । अपने भक्तों को स्थानकों में लाइट लगाने की-फ्लश बनवाने की प्रेरणा करते।' नल का जल अचित हैयह प्रतिपादन करते । दो आदमी सदा उनके साथ सेवक रूप में रहते
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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