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________________ ( ५९ ) बोला-"ऐसा कुछ नहीं है। आजकल में कुछ पढ़ने में लगा रहता हूँ । अच्छा अभी हो आता हूँ । क्या प्रवचन भी होते हैं ?" ___"हाँ, हम प्रवचन में ही तो जा रहे "-भाई ने कहा । उसने आश्चर्य से पूछा-"क्या तुम प्रवचन सुनोगे?" भाई का आश्चर्य उसके लिये चुनौती जैसा हो गया । वह भाई का बड़ा आदर करता था। अत: कहीं कुछ गलत शब्द मुँह से न निकल जाय-इस हेतु सम्हलकर बड़े संकोच से झेंपता हुआ-सा वह बोला-“यों ही पूछ लिया। क्यों-क्या मैं प्रवचन नहीं सुन सकता हूँ?" गुणधीर ने सहज भाव से हँसकर कहा --"सुन सकते हो, भाई ! ऐसा सौभाग्य तो तुम्हारा है ही। अच्छा, हम जा रहे हैं ।" परिवार के अधिकांश सदस्य प्रवचन सुनने रवाना हो गये । ___ भाई की सहज भाव से कही हुई बात से उसका अहंकार फँफकार उठा। उसे विचार आया-भाई साहब ने मुझे इतना भी नहीं कहा कि तुम भी प्रवचन में चलो। क्या मैं धर्म-दृष्टि से इतना तिरस्कृत हूँ ?" उसे गुणधीर की उपेक्षा अपना घोर अपमान लगी। उसने निर्णय किया-'मन लगे या न लगे, आज पूरा प्रवचन अवश्य सुनना है । मैं यह जानता हूँ कि 'कर्मजीव को नाच नचा रहा है, 'जीव विषयों में फंसा हुआ है' 'संसार असार है-दुःखमय है' 'मोक्ष में ही शाश्वत् सुख है ये ही बातें रहेंगी प्रवचन में ! जो भी हो-आज प्रवचन सुनना है जरूर।' युगवीर प्रवचन में पहुँचा । बहुश्रुत मुनिराज प्रवचन फरमा रहे थे । वे राग की दारुणता का चित्रण कर रहे थे। फिर उसके प्रभाव का विश्लेषण करते हुए उससे होनेवाली जीव की दुर्दशा का वर्णन किया और उसी प्रसंग में तन्निमित्त से होनेवाले आत्महत्या के भाव का किञ्चित् विवेचन किया। युगवीर को प्रवचन में कुछ अद्भुतता लगी-अपनी स्वानुभूति की प्रतिध्वनि प्रवचन में प्रतीत हुई। उसका मन प्रवचन में रम गया। प्रवचन के बाद उसने अपने पिता
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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