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________________ ( ६० ) मुनि और अन्य मुनियों के दर्शन किये। आज मुनि-जीवन के प्रति उसके हृदय में किञ्चित् आकर्षण जाग्रत हुआ। वह दूसरे दिन भी प्रवचन में आया । ‘ऐसा सौभाग्य तो तुम्हारा है ही भाई के ये वचन उसके कर्ण कुहरों में गूंज रहे थे । आज का प्रवचन सुनकर लगा कि सचमुच में ऐसे प्रवचन सुनना सौभाग्य की ही बात है। आज दर्शन करते हुए मुनि रणधीरसिंहजी ने पूछा"कुछ धर्म-आराधना करते हो या नहीं ?" ____ “महाराज सा'ब ! धर्म के विषय में कुछ जानता ही नहीं हूँ, तो धर्म-आराधना की बात ही कहाँ है ? मात्र दो दिन से ही प्रवचन सुन रहा हूँ । इससे पहले कभी प्रवचन सुने ही नहीं।" वात्सल्यसनी दष्टि से अमृतवर्षण-सा करते हए मनिराज बोले"प्रवचन सुनो । धर्म के सन्मुख बनो और आराधना करो।" उसके मंह से अनायास ही निकल गया-"आपका आशीर्वाद सफल हो, गुरुदेव !" बोलने के पश्चात् उसे स्वयं आश्चर्य हुआ कि ये वचन मुंह से कैसे निकल गये । वह नित्य प्रवचन में आने लगा। उसे चित्त में शान्ति का अनुभव हुआ । उसके हृदय का घाव भर गया । पिता मुनीजी का वात्सल्य भरा सान्निध्य उसे मिल ही रहा था। एक दिन उसे विचार आया--'मैं आत्मघात की सोच रहा था। इससे मनि बनना क्या बुरा है ?' अब उसका यह विचार मात्र विचार ही नहीं रहा, पक्का निर्णय हो गया और एक दिन साहस करके पिता मुनिजी के समक्ष अपने भाव प्रकट कर दिये। रणधीर मुनि को आश्चर्य भी हुआ और आनन्द भी । उन्होंने पूछा--"क्या कहा ? मेरे कानों को विश्वास नहीं हो रहा है !" "अविश्वास का कोई कारण ही नहीं है। मेरा निर्णय पक्का है।" "अच्छा, गुरुदेव के समक्ष तुम्हारी बात रमूंगा।" रणधीर मुनि ने समय देखकर युगवीर की बात गुरुदेव को सन्मुख रखी । गुरुदेव ने कहा-"मुनिजी ! तुम्हें युगवीर की बात पर विश्वास
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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