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________________ भी मनुष्य नहीं बच सकता । पंचमकाल का प्रभाव इसमें जन्मे हुए सभी व्यक्तियों पर पड़ा है । आज परिहारविशुद्धादि चारित्र वाले या भिक्षुप्रतिमा तथा जिनकल्प धारण करने वाला एक भी मुनि नहीं मिल सकता । यह इस काल का और इसमें उत्पन्न मनुष्यों के लिए वैसी सामग्री के अभाव का दोष है । इसका उदाहरण वेशधारियों का बचाव नहीं कर सकता । क्योंकि थोड़े रूप में भी सुसाधुओं का अस्तित्व है । वे चारित्र का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं, दोषों से बचने में तत्पर रहते हैं । उन महात्माओं पर तो काल का प्रभाव नहीं पड़ा और सारा प्रभाव उन कुशीलियों पर ही पड़ गया! अत एव कुशीलियों का उपरोक्त बचाव मिथ्या और दुर्वचन रूप है ।। यह ठीक है कि इस समय अकषायी, यथाख्यात चारित्री जैसे परमोत्तम महर्षि नहीं मिलते, किन्तु संज्वलन में रहे हुए प्रमत्त संयत तो मिलते हैं । हलवा न सही, रोटी दाल ही सही । जब रोटी दाल अच्छी मिलती है, तो उसे छोड़कर पत्तलों की झूठन खाने वाला कौन होगा ? वेशधारी लोग अपना कुशील तो नहीं छोड़ें, किन्तु उपासकों से, शुद्धाचारी श्रमण जैसा आदर सत्कार पाने की आशा रखे, तो यह भी उनकी ज्यादती है । वस्तु का मूल्य उसके गुण के अनुसार ही मिलता है । नकली वस्तु देकर असली जैसी कीमत कैसे मिल सकती है ? वह तों ठगाई है, धोखाधड़ी है, बेईमानी है । अत एव आचार्यश्री ने कुगुरुओं की युक्तियों को 'दुर्वचन' कहा, वह ठीक ही है। पवयणनामग्गाहं वक्खाणे जो करेइ विगहाइ । कामत्थहासविह्मियकारी किर मुद्धबालाणं ।।८३||
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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