SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनका उपरोक्त कथन स्वीकार करने योग्य नहीं है । क्योंकि मुनिलिंग के धारण करने का अधिकार उन्हीं पवित्रात्माओं को है, जो चारित्र के गुण से सम्पन्न हों, अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हों, दुराचार से दूर हों । जिनमें चारित्र का गुण नहीं, उन्हें वैसा सत्कार पाने का अधिकार ही नहीं है । जिस प्रकार साहुकारी का ढोंग करके चोरी करने वाला व्यक्ति, दण्ड का पात्र है और पुलिस के परिधान में रहकर चोरी करने कराने वाले को कारावास का कठोर दण्ड मिलता है, उसी प्रकार साधुता का स्वांग सजकर दुराचार का सेवन करने वाला भी जिनधर्म एवं जनता का अपराधी है । वह धर्म चोर है । उसका सन्मान नहीं तिरस्कार होना चाहिए। पूर्वकाल के आचार विहीन साधुओं में मिथ्यात्व का इतना जोर नहीं था, किन्तु वर्तमान काल तो ऐसा निकृष्ट है कि इसमें दुराचार भी चल रहा है और जिनधर्म विरोधी प्रचार भी भगवान् के वेशधारी खुले आम कर रहे हैं । उनके दुःसाहस की तो भूतकाल में कोई जोड़ी. ही नहीं मिलती। ये वंश के कुल्हाड़े से धर्म की जड़ को काटकर उस भूमि पर अपना मिथ्यामत रोप रहे हैं और अज्ञानग्रस्त जनता वेशपूजक बनकर उन वेशविडम्बकों से अपने धर्म का उच्छेद करवा रही है। कितनी अंधेरगर्दी चल रही है-अभी । ___ आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी कहते हैं-ऐसे वेश लजाने वालों को धिक्कार है । इनके ऐसे कुवचन सुनकर मस्तक में शूल उठने की तरह पीड़ा होती है । निग्रंथ प्रवचन के प्रेमियों को ऐसे कुकृत्य देखकर पीड़ा होती है । यह उनकी धर्म प्रियता है । 67
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy