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________________ पट्टा किसे बतावें I श्री हरिभद्रसूरिजी निरुपाय होकर कहते हैं कि इन वेशविडम्बक कुगुरुओं के दुराचार के निवारण का क्या उपाय करें ?1 किसके सामने पुकार करें ? कौन सुनने वाला है यहाँ ? बिलकुल ठीक है । कोई भी सुनने वाला नहीं । रक्षक कहलाने वाले तो मात्र खेत में खड़े किये गये निर्जीव रखवारे के समान हैं। उनके कान और आँख, अपनी स्थिति संहाले रखने के काम में आते हैं । उनकी शक्ति वेश विडम्बकों की रक्षक बन जाती है । वे अपना उत्तरदायित्व पदरक्षा एवं समूहरक्षा में ही मानते हैं । धर्मरक्षा, उत्तम परंपरा के निर्वाह के उत्तरदायित्व से तो उन्होंने आँखें ही मूंद ली है। यह दशा बतलाती है कि उनके मन में धर्म का आदर नहीं रहा । उनकी सत्वहीनता को विकारी तत्त्व भाँप गया । उसने देख लिया यह सुहाग कंकण तो हमारी ढाल का काम दे रहा है । इसकी छत्रछाया में हम बेधड़क मनमानी मौज कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में धर्म का पट्टा किसे बताया जाय ? किसके सामने फरियाद की जाय ? इस पोलंपोल में सुनने वाला ही कौन है ? - कुछ आगमज्ञ उपासक - जिनमें शुद्ध श्रद्धा का अस्तित्व है, इस दुःखद स्थिति को जानते हैं, समझते हैं । उनके मन में इसका खटका भी है, किन्तु वे भी निरुपाय हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं कि वे जानते बुझते हुए भी साहस का सर्वथा अभाव होने से वेशविडम्बकों के चरणों में भी अपनी भक्ति अर्पित करते रहते हैं । उनका विरोध तो दूर रहा, उपेक्षा भी नहीं कर सकते । 1. श्री हरिभद्रसूरिजी के समय का यह कथन है तो आज की तो स्थिति कितनी विकट है । आचारहीनता की बात कोई सुनने को तैयार नहीं है । 68
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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