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________________ आहारादि ग्रहण में स्पष्ट आधाकर्मादि दोष, दूषित वस्तु ग्रहण आदि ऊपर बताये कुशीलियापन से युक्त हों, वे धर्मेच्छुक धर्मप्रेमी एवं निर्ग्रन्थ धर्म के हितैषी के लिए त्याग करने योग्य है, फिर भले ही वह एक व्यक्ति हो या पूरा गच्छ। वह संगति करने के योग्य नहीं है । क्योंकि "कुसाधु को सुसाधु की तरह सम्मान देने से मिथ्यात्व भी लगता है और असंयमियों का अनुमोदन होता है" तथा श्री जिनधर्म की अवहेलना का पाप होता है । चुनाव में दो व्यक्ति खड़े हैं, एक सदाचारी ईमानदार और दूसरा भ्रष्टाचारी बेईमानः । यदि कोई भी व्यक्ति, जानबूझकर भ्रष्टाचारी को वोट देता है, तो वह भ्रष्टाचार एवं बेईमानी का समर्थक एवं सदाचार और ईमानदार का विरोधी है । वह पाप को बढ़ाने वाला और धर्म को नष्ट करने वाला है। कोर्ट में न्यायाधिकारी के सामने एक मुकदमा उपस्थित हैचोरी और साहुकारी का । साक्षी- यदि चोर के पक्ष में साक्षी देगा, तो वह चोर एवं चोरी का पोषक और साहुकार एवं साहुकारी का घातक होगा । जो जानता समझता हुआ भी चोर का पक्ष लेगा, वह तो विशेष रूप से पापपोषक एवं धर्मघातक होगा। वह भी धर्म-घातक एवं पाप-पोषक की कोटि में ही आयगा-जो समझता हुआ भी दूर एवं तटस्थ रहकर पाप को सफल एवं धर्म को विफल होते देख रहा है और अपनी साक्षी देकर सत्य पक्ष को बलवान् नहीं बनाता और पाप पक्ष को निर्बल करने में योग नहीं देता । उसकी जानकारी धर्म पक्ष में 22 -
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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