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________________ उपयोगी नहीं हुई । उसकी उपेक्षा ने पापपक्ष को सफल होने दिया । जब विधान सभा या लोकसभा में किसी विषय पर मतगणना हो रही हो, तब मतगणना के समय पार्टी के सदस्यों को अवश्य ही उपस्थित रहना होता है और मतदान के समय मत देना होता है । यदि कोई सदस्य मत नहीं देकर तटस्थ रहे, तो वह पार्टी को क्षति पहुँचाने वाला माना जाता है और उस पर अनुशासन की कारवाई होती है। उपरोक्त उदाहरणों से सिद्ध है कि कुशीलियों को आदर सन्मान देने वाला, उनका पक्ष करने वाला और तटस्थ रहकर अक्रिय रहने वाला असदाचार का समर्थक, पोषक एवं चाहक है और धर्म शासनाधीश भगवान् महावीर के उत्तम-उत्तमोत्तम धर्म-उत्तम आचार का विरोधी, शोषक एवं नहीं चाहने वाला है । जो जिसे चाहता है, वह उसमें यथाशक्ति योग देता है । जो किचित् भी-वचन और अपने मन से भी योग नहीं देता वह उस धर्म का चाहक कैसे माना जा सकता है ?... जब-जब भी निर्ग्रन्थ धर्म कमजोर स्थिति में पहुँचा और कुशीलियों का बल बढ़ा, ऊन कुशीलियों को उपासकों का बल प्रास हुआ, तभी वह जोर पर आया । यदि उपासकवर्ग कुशीलियों का सहायक नहीं होता, तो श्रमणवर्ग की स्थिति नहीं बिगड़ती और साधुओं द्वारा आरम्भ, परिग्रह तथा कदाचार का विस्तार होकर धर्म-साधुता, अधर्म-असाधुता के नीचे नहीं दबती । उपासकों का समर्थन, शक्ति एवं सहयोग पाकर ही कुशीलियापन फला फूला और जैन धर्म की दुर्दशा हुई और हो रही है । 23
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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