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रात भर नींद लेना शास्त्र में निषिद्ध है, तब अकारणस्वस्थ दशा में दिन को नींद लेना तो निषिद्ध है ही। सव्वं थोवं उवहिं न पेहए न य करइ सज्झायं । निच्चमवझाणरओ, न य पेहमज्जणासीलो ||३६|| ___ सभी उपकरण अथवा थोड़े उपकरण की भी मुहपत्ति की भी प्रतिलेखना नहीं करे । स्वाध्याय भी नहीं करे, सदैव दुर्ध्यान में रत रहे और प्रतिलेखना प्रमार्जना की क्रिया से वंचित रहे ।।३६।।
संगति के भी अयोग्य एयारिसा कुन्सीला हिट्ठा पंचावि मुणिवराणं च । न य संगो कायव्वो तेसिं धम्मट्ठिभव्वेहिं ||३७|| आयरिय-उवज्झाया, पवत्ति थेरा वि साहुणो अहवा । जत्थ अणायारपरा, सो गच्छो इन्थ मुत्तव्यो ||३४||
इस प्रकार के कुशीलिए, नीचे कहे जाने वाले पांच प्रकार के मुनियों में से कोई भी हो, वे हीन कोटि के हैं । इसलिए धर्म प्रेमी भव्य जनों को इनकी संगति नहीं करनी चाहिए ।।३७।।
१. आचार्य २. उपाध्याय ३. प्रवर्तक ४. स्थविर और ५. साधु, ये पांच जिस गच्छ में अनाचार वाले हों, वह गच्छ त्याग देने योग्य है ।।३८।।
चाहे आचार्य हो या उपाध्याय, अथवा सामान्य साधु ही हो, जो उपरोक्त प्रकार से कुशीलिया हो अर्थात् श्रमण समाचारी का यथायोग्य पालन नहीं करता हो, वह निर्ग्रन्थ धर्म के प्रेमियों के लिए संगति करने के योग्य नहीं है । अर्थात् जो साधु कहला कर, आचार्यादि पद पाकर भी आरम्भ, परिग्रह, सुखशीलियापन,
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