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________________ कसौटी, कुसंघ या जन-समूह नहीं है । यदि जन-समूह की विशालता में धर्म होता, तो साधुओं से संसारी अनंतगुण हैं । इससे तो असंयम भी धर्म हो जायगा ? सोचने का यह ढंग ही खोटा है । धर्म की कसौटी जनसमूह नहीं, कुसंघ भी नहीं । इसकी खरी कसौटी धर्म ही है और धर्म के आगमोक्त विधि विधान है । जो सदस्य उनका निष्ठा पूर्वक पालन करते हैं, वे ही सुसंघ के योग्य हैं । यदि वे थोड़े हों, तो भी वे ही धर्म को धारण करने वाले, धर्म संघ के अंग हैं, शेष तो सुंदर विषफल के समान त्यागने योग्य है-कुसंघ है । आज्ञा-भ्रष्ट के समूह को संघ मत कहो सुहसीलाओ सच्छंदचारिणो, वेरिणो सिवपहस्स । आणाभट्ठाओ बहु-जणाओ, मा भणह संघुत्ति ||११९|| सुखशीलिए और स्वच्छन्दाचारी लोग, शिवपथमुक्तिमार्ग के शत्रु हैं । ऐसे आज्ञा भ्रष्ट लोगों का बड़ा समूह हो, तो भी उसे "संघ" नहीं कहना चाहिए ।।११९।। देवाइदव्वभक्खण-तप्परा, तह उम्मग्गपक्खकरा । साहुजणाण पओस-कारिणं, मा भणह संघं ||१२०।। देवादि के द्रव्य का भक्षण करने में तत्पर, उन्मार्ग का पक्ष करने वाले और सुसाधुओं के प्रति द्वेष रखने वाले को 'संघ' नहीं कहना चाहिए ।।१२०।। अहम्मअनीईअणायार-सेविणो, धम्मनीइपडिकूला | साइपभिइचउरो वि बहुया अवि मा भणह संघं ||१२१|| अधर्म, अनीति और अनाचार का सेवन करने वाले, धर्म 115
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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