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________________ करते हैं और लोगों पर निर्दोषता का रंग जमाने की भरसक चेष्टा करते हैं। उनके उपासक भी पक्षपात, अज्ञान तथा स्वार्थवश होकर दुराचारियों के पूजक, पोषक और समर्थक बन जाते हैं। पापात्माओं का संगठन कितना बलवान होता है, यह डाकुओं के संगठन से जाना जा सकता है । संगठनबल से वे डाकू, अपने से कई गुणा अधिक संख्या वाले गांव को आतंकित करके लूट लेते हैं । ऐसे डाकूओं के संघ को पकड़ने या तोड़ने में महान् शक्तिशालिनी सरकार भी असफल हो जाती है । आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी कहते हैं कि ऐसे दुराचारी और वेश मात्र से साधु दिखाई देने वालों का संघ, 'कुसंघ' है । उस कुसंघ का पक्ष करने वाले लोग, जिनधर्म के प्रेमी नहीं, किन्तु उन्मार्ग एवं दुराचार के रोगी हैं और सुसाघुओं के द्वेषी हैं । ऐसा सदाचारियों का विरोधी और दुराचारियों का पक्षपाती समूह, धर्मसंघ एवं सुसंघ नहीं है । वह सुसंघ मानने के योग्य ही नहीं है । वास्तव में सदाचार को नष्ट करने वाला, धर्म के उत्तम नियमों और मर्यादा का लोप करने वाला समूह भी क्या धर्मसंघ कहे जाने के योग्य है ? वह तो धर्म-ध्वंसकों का संघ है । ऐसे कुसंघ की प्रशंसा वे लोग ही कर सकते हैं-जो जिनधर्म के विरोधी, दुराचारियों के पक्षपाती अथवा मूढमति हों । वे अपनी करतूत से धर्म के नाम पर पाप कमाते हैं। कई मूढ़ लोग, लोगों का बड़ा समूह देखकर भ्रमित हो जाते हैं और मान लेते हैं कि जिधर लोगों की अधिक संख्या हो, वही सुसंघ है । यह उनकी बुद्धि हीनता है । सत्य एवं धर्म की 114
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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