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प्ररूपणा और योग्यतानुसार स्पर्शना करना, इस संघ का कर्तव्य है । श्रमण संघ और उस संघ के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है कि वह अपनी श्रद्धा प्ररूपणा निग्रंथ प्रवचन के अनुसार रखे और पांच महाव्रत, समिति, गुप्ति तथा समाचारी का निष्ठापूर्वक पालन करे । इस प्रकार की प्रवृत्ति करने वाला संघ ही 'सुसंघ' होता है । श्रावक संघ भी वही सुसंघ होता है, जिसकी श्रद्धा जिनधर्मानुसारी हो । वह जिनेश्वर देव के अतिरिक्त किसी को सुदेव और निग्रंथों के अतिरिक्त किसी को सुगुरु नहीं मानता हो तथा मोक्ष के उद्देश्य पूर्वक संवर निर्जरा के परिपालन को चारित्र धर्म मानता हो, यथा शक्ति, पूजा, पाठ, सामायिक, व्रत, प्रत्याख्यान, ज्ञानार्जन करता हो । इस प्रकार का संघ ही सुसंघ हो सकता है । इसके विपरीत कुसंघ है।
जिस श्रमण संघ में जिनधर्म विरुद्ध प्रचार किया जाता है, स्वच्छन्दाचार का बोलबाला हो और असंयमी प्रवृत्ति बढ़ रही हो तथा
दुराचार चतुराई पूर्वक चलाया जा रहा हो, वह तो कुसंघ ही
__ ऐसे कुसंघ का चलना सहज सरल और चिरस्थायी होता है । स्वच्छन्दाचार युक्त संघ के चलने में कोई कठिनाई नहीं होती । दुराचारी सदस्य सोचते है कि हमारा निर्वाह संगठन में ही हो सकता है । इसलिए वे ऐसे कुसंग को अपनी सुरक्षा का गढ़ बनाकर पाखंड चलाते रहते हैं ।
कभी किसी के दुराचार का भंडा फूट जाता है, तो दूसरे साथी उस भ्रष्टता को किसी भी प्रपंच द्वारा दबाने का प्रयत्न
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