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________________ आई और बाद में हेट, पेंट, नेकटाई आदि आ गये । घोती गयी, पाजामे आये और उनमें भी विविध भेद हो गये । इतना ही नहीं, सिर से पैर तक पूरी पोशाक ही अंग्रेज जैसी हो गयी । महिलाओं की पोशाक में कितना परिवर्तन हुआ ? आर्य मर्यादाओं को सर्वथा नष्ट विनष्ट कर दी । खानपान आदि में भी पलटा आ गया ।' यह सब संगति का प्रभाव है । उदय भाव के चलते जीव में संगति का असर होता रहता है । संगति ही क्या, आँखों से देखने मात्र से-दृष्टि पथ में आयी वस्तु भी अपना प्रभाव जीव पर डाल देती है । गाय, बैल आदि हाथी या सिंह को देखकर ही भयभीत होकर भाग जाते हैं और खाद्य या पेय वस्तु आँखों के सामने आते ही लपकते हैं । मनुष्य भी मित्र को देखकर प्रसन्न होता है और विरोधी को देखकर अप्रसन्न होता है तथा स्त्री को देखकर मोहित होता है । जब दूर से देखकर भी मनुष्य हृदय प्रभावित हो जाता है, तब संगति से अप्रभावित कैसे रहेगा? अत एव कुशील मनुष्य के संसर्ग से दूर रहने की शिक्षा, रुचि और प्रवृत्ति उचित ही है । इसमें संदेह करने की गुंजाइश नहीं है । समझदारों को इस विषय में किसी प्रकार का संदेह नहीं रहना चाहिए। जिनेश्वरों की आज्ञा आलावो संवासो वीसंभो संथवो पसंगो य । हीणायारेहिं समं सव्वजिणेहिं पडिकुट्ठो ||१११|| सभी जिनेश्वर भगवंतों ने हीनाचारियों के साथ आलाप (एकबार बोलना) संवास (साथ में रहना) विश्वास, प्रशंसा और 1. लाईन में खड़े रहकर मांगकर याचक के समान खाने में गौरव मानने लगे। 100
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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