________________
(८८) जीवोनो बचाव थाय तेम एक आसने बेसी ध्यानादि पण करवा जोइए. एटले वारंवार इधरउधर फरवू न जोइये जेथी जीवोनी विराधनानो प्रसंग प्राप्त थाय, अथवा डंडासण, उत्कटुकादि आसन वाळी कायार्नु दमन करवू-कायानो निग्रह याय ते रीते स्थिर थवू. उपाध्यायजीना वचनमा स्वाध्यायादि. मांथी निवृत्त थइ खुल्ला स्थानमां नग्न देहे उभा रही चैत्रवैशाख महीनानी गरमीमां आतापना लेवी, कडकडती ठंडीमां कपडा अलग करी खुल्ला स्थानमां ठंडी लेवी एटले शीतसहन विगेरे क्रियानो करवी जोइये; परंतु आत्मा प्रार्तध्यानी न थाय ए वात नितान्त ध्यानमा राखवी. 'उपसंहार'
भाटलं कथन करी हवे श्लोकना उत्तरार्दथी ग्रंथकर्ता बाल योग्य धर्मोपदेशनो उपसंहार करता जणावे छे के-या सर्व बाल योग्य धर्मोपदेश बाह्य आचार संबंधी जाणवो. वस्तुतः अही जे विस्तृतरूपे बाह्य आचार संबंधी उपदेश जणान्यो ते अने तेने लगतो ज उपदेश उपदेशके बालवर्गने पापवो. या उपदेश बाह्य आचार संबंधी ज आपको जोइये पाटखें तो बराबर उपदेशके ध्यान राखवू. सिवाय आचार्यश्रीए 'इत्यादि' अहीं आदि शब्द प्राप्यो छे एटले प्रादि शब्दथी साधुए जे स्थानमा रहेवू तेनी अने वस्त्रपात्रनी उभय काल बराबर ध्यान राखी पडिलेहणा करवी, उभय काले लागेला दोषनी शुद्धि माटे प्रतिक्रमण करवू, एवं सूत्रादिना अभ्यास माटे