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( ८६ ) रात्रिना पाछला पहोरमां शास्त्रोक्त विधिपूर्वक प्राभातिककाल ग्रहण करवानी विधि विगेरे क्रिया अवश्य करवी जोइये. पुनः महाव्रतोतुं पालन, गरम जलनुं पान, रात्रिभोजन आदिनो त्याग ए अनुष्ठानो साधुए अवश्यमेव करवा जोइये. अहीं दर्शावेला या सर्व साधुओना बाह्य आचारो जाणवा. नितान्तेन बालवर्ग बाह्य आचारने निहाळवा जेटली ज बुद्धि धरावनार तथा तत्परत्वे अनुरागी होवाथी या सर्व उपरोक्त उपदेश तेश्रोनी श्रद्धामां वधारो करी धर्मप्रति प्रबल अनुराग उपजावे ए संभवित ज छे, बन्के वधुमां आवा उपदेशथी उपदेशक तेोना हृदयमां ग्रंथकर्ताना वचन प्रमाणे बोधिबीज प्रकटावी मध्यम अने बुधपणानी अवस्था पर लइ जाय ए काइ अधिकोक्ति न गणाय.
श्रा रीते टुंकमां ग्रंथकर्ताए बाल योग्य हितोपदेश कह्यो. आवा उपदेशथी बालजीवो धर्ममां दृढ प्राशयवाला थइ अवश्य क्रमशः मध्यमवर्गमां आवी जाय छे. अतएव आ लोकोने हवे मध्यमवर्ग योग्य उपदेश आपवो जोइए, माटे आ उपदेशनुं स्वरूप आचार्यश्री अहीं दर्शावे छे.
मध्यमबुद्धेस्त्वीर्यासमिति
प्रभृति त्रिकोटिपरिशुद्धं ॥ आयंतमध्ययोगैर्हितदं,
खलु साधुसवृत्तम् ॥२-७॥