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अवश्य करवू. क्षणिक विषयसुखना साधनो दूर करी आत्मा संबंधी मुख्य धर्मनो खास विचार करवो, साथे साथे संसारनी असारता, विषयोनी कटुता, धननी चंचलता अने कुटुंबनी स्वार्थलोलुपता पण भाववी. आथी प्रतिष्ठा समयमां प्राप्त एक सामान्य भाव पण पाछलथी विस्तृतरूपे थइ अति म्होटा प्रमाणमां थइ जाय छे. अहीं शास्त्रकर्ता आ भावने वधारवाना साधनो स्वयं उत्तरार्धथी दर्शावे छे. “क्षान्त्यादियुतः” प्रतिदिन क्षमा, मृदुता, आर्जव, संतोष आदि आत्माना परमधर्मोनी भावना करी तेनुं स्वरूप विचारी उपरोक्त भावने वधारवो, एटले आ रीते जलसिंचन करवाथी ते भावनी वृद्धि थाय छे. परमार्थ ए के-जेम जलसिंचन विना अथवा दाह पडवाथी बीज वधे नहीं पण विणशी जाय तेम अहीं पण उत्तम परमात्म संबंधी अल्प प्रशस्तभाव अगर ध्यानरूप बीज जलसिंचन विना अथवा तो अनादिथी आत्माना खूणामां घर करीने बेठेला क्रोध, मान, माया, लोभ आदि शत्रुओ-अग्निज्वालाओ प्रदीप्त थवाथी ते भावरूप बीजांकुर भस्मीभूत थइ जाय; माटे विवेकीए ते भावनी वृद्धि करवा अर्थे, आ अग्निज्वालाओने बूझाववा आविर्भाव न पामे ते निमित्ते श्रीमान् विनयविजयजी महाराज कहे छे तेम-"क्रोधं क्षान्त्या माईवेनाभिमानम् ,हन्या माया मार्जवेनोज्वलेन। लोभं वारांराशिरौद्रं निरंध्याः,संतोषेण प्रांशुना सेतुनेव” ॥ " क्षमाथी क्रोध, नम्रताथी अभिमान, उज्वल