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- मान्यो छे. ए भावने ज ध्यानवेत्ताओ रसेन्द्र कहे छे. परमार्थ एके - ए भावरूप रसेंद्र पारो आव्या पछी तेना प्रभावथी आत्मा सर्व सिद्धि पामी शके छे, एज वार्ता आ ग्रंथकर्ता अष्टक प्रकरणमां कहे छे " शुभानुबन्ध्यतः पुण्यं कर्त्तव्यं सर्वथा नरैः । यत्प्रभावादपातिन्यो, जायन्ते सर्व संपदः ॥ १ ॥ संदागमविशुद्धेन, क्रियते तच्च चेतसा । एतच्च ज्ञानवृद्धेभ्यो, जायते नान्यतः क्वचित् ॥ २ ॥ “ अतः सर्वथा मनुष्योए शुभ बंध करनार एवं पुण्योपार्जन कर जोइए, कारण के एना प्रभावथी ज अविनश्वर सर्व संपत्तिओ प्राप्त थाय छे. आ पुण्योपार्जन सदागमथी विशुद्ध एवा अंतःकरणथी ज करयुं, अने सदागमज्ञाननो लाभ ज्ञानस्थविरो पाथी थाय पण अन्य पासेथी थाय नहीं. " निदान ए के - उपरोक्त भावद्वाराए पुण्यानुबंधी पुण्यनो बंध थाय तेमज तेनी परंपरा चाले जेथी कालक्रमे आ पुण्यानुबंधीपुण्यनो प्रवाह अनुक्रमे आत्मानी विशुद्धि करी आत्मानुं परम प्रकृष्ट अप्रतिस्खलित निराबाध सिद्ध कांचन तुल्य रूप प्रगट करे छे, एटले एकान्त निरावर्णी निष्कलंकरूपने आविर्भूत करे छे, जेने परमात्मा एवं अभिधान लागु थाय एवं स्वरूप प्रकट थाय छे. अहीं अंतरनी विशुद्धिरूप भाव ते पारो अने जीवात्मा ते ताम्र तथा पुण्यानुबंधीपुण्य ते वनस्पतिनो रस, एटले भावरूप पारो जीवात्मारूप ताम्रने पुण्यप्रवाहथी विंधी परमात्माना रूपमा फेरवी नांखे